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कर्म फल

उत्तम फल का बीज उत्तम चाहिए, अधम नहीं कुकर्म का फल कालांतर में भी अच्छा नहीं आता। कर्म के इस अबाधित नियम का भंग करनेवाला जीवन में दु:खी होता है। इस नियम के पालन में ही जीवन की आंतर बाह्य शांति और उन्नति का आधार है। जीव कर्म के साथ नहीं परंतु कर्मफल के साथ लड़ रहा है। हम प्रत्येक…

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अनंत कोटी सिद्धस्थान

अनंत कोटी सिद्ध के स्थान रूप में श्री शत्रुंजय तीर्थ की भूमि की ही प्रसिद्धि का क्या कारण है? इस प्रश्न का समाधान प्रखर तार्किक और परम बुद्धिनिधान, शास्त्रवेत्ता, वाचकप्रवर श्री यशोविजय जी महाराज इन शब्दों में कहते हैं- श्री सिद्धाचलादी तीर्थों का आराध्यत्व बताया। ज्ञान दर्शन चरित्र रूप भावतीर्थ का हेतु होने से उसका द्रव्यतीर्थत्व है। अनंत कोटी सिद्ध…

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प्रसन्नता का दान

प्रसन्नता का दान अर्थात् किसी के ऊपर निरंतर प्रसन्न दृष्टि से देखना। यह प्रसन्नता का यानी सम्मान का दान है। प्रत्येक प्रसन्नता संपत्ति को उत्पन्न करती है, यानी संपत्ति के पहले दौड़नेवाला घुड़सवार है और संपत्ति की बिरूदावाली बोलनेवाला छड़ीदार है। प्रभु भक्ति में से प्रकट होती चित्त की प्रसन्नता, यह एक ऐसी चुंबकीय शक्ति है कि जिसके प्रभाव से…

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मान-दान का प्रभाव

मानव को मान कषाय की अधिकता है इसीलिए अभिमान छोड़कर पूज्य व्यक्तियों के नाम ग्रहण पूर्वक मान देने मंं जो मानव जन्म की सार्थकता है। देव-गुरु के नमस्कार से धर्म का प्रारंभ होता है। उसके मध्य एवं अंत में भी नमस्कार द्वारा ही मानरहित और ज्ञानसहित बनते हैं। इसीलिए श्री नवकार परम मंगलकारी है। दूसरों की तरह ही आप्तजनों की…

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मैं नहीं, तू नहीं, वह

घड़ा पानी में डूबा रहे तब तक पानी में कहीं भी ले जाओ उसका वजन नहीं लगता। घड़े को पानी से बाहर निकालो तो तुरंत ही वजन लगेगा। उसी प्रकार मन को जब तक परमात्मा में डूबा रखेंगे, तब तक जगत का भार नहीं लगेगा। प्रभु को अपने से भिन्न देखने से दु:खरुपता का भार महसूस होगा। इसीलिए ‘मैं’ के…

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