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दान शील तप भाव योग
अपने घ्र को छोड़कर बाहर भटकना जितना दुखदायक है उतना कष्टदायक आत्मभाव को छोड़कर परभाव में भटकना है । स्व आत्मा को अपना भाव देने हेतु स्व का योग करवाने वाले दान , शील तप भाव और योग में जीवन को सलग्न करना चाहिए । आहार भय निद्रा और मैथुन का योग परभाव और परिग्रह को उत्तेजित करता है ।…
आत्मा में अवस्थान
आत्मा में स्थिर हो जाने से जीव ऐसे स्थान में स्थिर होता है कि जहाँ सूर्य -चंद्र या अग्नि प्रकाश की आवश्यकता ही नही रहती । आत्मा का आत्मा में अवस्थान यह मोक्ष का शिखर है, इस शिखर पर रहे हुए मनुष्य की आत्मा के वैभव के सामने तीनो लोको का वैभव भी तुच्छ है।इस स्थान को करोड़ो में से…
आज्ञापालन से मोक्ष
ज्ञान की प्राप्ति , ध्यान और शक्ति की अपेक्षा रखती है । आज्ञापालन बिना मोक्ष नही मिलता , यह श्रद्धा कहती है । आज्ञाकारक के ध्यान बिना आज्ञापालन नही यह भक्ति कहती है । आज्ञापालक का अनुराग और आज्ञाकारक का अनुग्रह ये दोनों मिलकर मोक्षमार्ग बनता है । आत्मा का शुद्ध स्वरूप वह मोक्ष है । उसकी प्राप्ति भक्ति और…
जीव के दो दोष
अशुद्ध जीव में अनादि काल से अशुद्धि के कारण दो दोषों ने अड्डा जमा लिया है । एक दोष है शुभ क्रिया में आलस्य और अशुभ क्रिया में ततपरता । दूसरा दोष है आत्म स्वरूप का अज्ञान और देहादि स्वरूप में आत्मस्वरूप का भृम । ये दोष जीवो में इस प्रकार जमकर बैठे गये है की जब ज्ञान की महिमा…
ज्ञानक्रियाभ्यं मोक्षः
आत्मा की दो अवस्थाएँ : आत्मा की शुद्ध अवस्था मोक्ष और आत्मा की अशुद्ध अवस्था संसार है । शुद्ध या अशुद्ध अवस्था किसी वस्तु की होती है । जिव , यह वस्तु है । उसकी दो अवस्थाएँ है । एक शुद्ध और दूसरी अशुद्ध । अशुद्ध अवस्था में रह हुआ जिव किस प्रकार शुद्ध अवस्था को प्राप्त कर सकता है…