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ऐसी छूट धर्म ने नहीं दी

सभा: दूसरे धर्मों की तुलना में हमारे धर्म में परिवेश की मर्यादा में इतनी छूट कैसे मिली? छूट किसने दी? हमारे धर्म ने ऐसी कोई छूट नहीं दी है। यह छूट तो आपने खुद ही ले रखी है। हम अक्सर पूरे दबाव पूर्वक कहते हैं, लेकिन आप हमारी कहां सुनते हो? आपको याद नहीं होगा कि इसी वालकेश्वर-चंदनबाला में 7-8…

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औचित्य माता पिता का – भाग 23

आपका कृत्य, संतानों के लिए आदर्श है: यहां धर्म स्थान में, प्रवचन में आओ तब आपके माता-पिता को भी साथ में लाएंगे? उनका हाथ तुम स्वयं ही पकड़ो यह अच्छा है कि तुम्हारा आदमी पकड़े वह अच्छा। आपके घर की महिलाएं माता का हाथ पकड़े। आपकी पत्नी को यह काम सौंपो। आप पिताजी का हाथ पकड़कर लाओ। व्यख्यान में आओ…

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औचित्य माता पिता का – भाग 22

हक का पागलपन नहीं चल सकता: सभा: पुत्र का अधिकार नहीं? सब माता-पिता का है, वह दे तो ही लेना चाहिए। वे न तो नहीं लेना चाहिए। दुनियादारी की रीत से भले ही हक लगता हो, किंतु धर्म की दृष्टि से कोई हक नहीं लगता। रामचंद्रजी का दशरथ महाराजा की गद्दी पर अधिकार था कि नहीं? बड़े पुत्र थे, पिता…

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औचित्य माता पिता का – भाग 21

उम्र की तासीर समझकर व्यवहार करें: आपके माता-पिता आपसे कुछ भी कहे, बुलाए तो तुरंत ‘जी’ बोलो। अपनी जगह पर बैठे रहकर नहीं, बल्कि उनके पास जाकर उनकी बात सुनो, समझो और उस पर विचार करके उन्हें अच्छा-अनुकूल प्रत्युत्तर दो! वह जो कहे उसे सुनकर उसे स्वीकार करो तथा स्वीकार करने के बारे में उनके ख्याल आए ऐसा व्यवहार करो।…

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औचित्य माता पिता का – भाग 20

वाणी भी मीठी विन्रम चाहिए: माता पिता के साथ जैसे काया से विनम्र व्यवहार करना है वैसे ही वाणी से भी विनम्र व्यव्हार करना है। उनकी आपके लिए जो इच्छा हो, उसमे कभी विकल्प न करें।वे जो कहें वह होना ही चाहिए । अधर्म की बात कहते हों तो बात अलग है , किन्तु उनकी बात पर अमल करने में…

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