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शरीर और आत्मा का सम्बन्ध

शरीर और आत्मा का सम्बन्ध संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से व्यंजन और स्वर के संबंध जैसा है । मूल अक्षरों में अ – आ आदि स्वर है और क – ख आदि व्यंजन है , स्वयं राजन्ते आईटीआई स्वराः जिसका उच्चारण हमेशा अपने आप से होता है उसे स्वर कहते है । स्वर की सहाय मिलने पर ही जिसका पूर्ण…

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आत्मा की शक्ति

मन और बुद्धि इन्द्रियों से भी सूक्ष्म है । मन को दूरदर्शक यंत्र ( Telescope) कहा जा सकता है तो बुद्धि को सूक्ष्मदर्शक यंत्र (Microscope) परन्तु आत्मा इन दोनों से कुछ और ही है । वह दूर से भी दूर ओर सूक्ष्म से भी सूक्ष्म पदार्थो का ज्ञान करने की शक्तिवाली है । शरीर मे या इन्द्रियों में, मन मे…

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आत्मा का स्वरूप

आत्मा यानि क्या ? आत्मा द्रव्य से केसी है ? आत्मा क्षेत्र से केसी है ? भाव से आत्मा में कितना ज्ञान है ? बल, वीर्य और पराक्रम केसा है ? वह स्थिर है या अस्थिर है ? ध्रुव है या अध्रुव ? संख्या से, लक्षण से और प्रयोजन से आत्मा का स्वरूप केसा है ? इस प्रकार आत्मा सम्बन्धी…

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पुण्य की परम आवश्यकता

धर्म के दो स्वरूप- प्रत्येक वस्तु के दो पक्ष होते हैं उसी प्रकार धर्म के भी दो स्वरूप है। मोक्षसाधक जीव को प्रत्येक धर्म-अनुष्ठान द्वारा एक और निर्जरा और एक और संवर होता है। यानी कि बंधे हुए पुराने अशुभ कर्मों का अंशतः क्षय और नए बंध रहे अशुभ कर्मों का निरोध होता है। साथ ही एक और शुभ कर्मों…

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कर्म के प्रकार

कर्म दो प्रकार के हैं, अच्छी सामग्री का संयोग जिससे मिलता है, उसका नाम पुण्य कर्म! बुरी सामग्री का संयोग जिससे मिलता है उसका नाम पापकर्म! सत्कार्य को करने वाली आत्मा पूर्ण रूप बीज को बोती है जिसके फलस्वरूप भावी में सुंदर फल पाती है जबकि कुकार्य करनेवाली आत्मा पापरूप बीज बोती है जिसके द्वारा भावी में विपरीत फल पाती…

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