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परम को प्रमाण

दूसरों के दु:खों को दूर करना यह परमात्मा का स्वभाव है। इसीलिए परमात्मा नित्य वंदनीय है। बहुत लोग कहते हैं कि परमात्मा को वंदन करने से क्या लाभ? परमात्मा को वंदन करने से पाप के साथ पाप बुद्धि का भी नाश होता है। क्योंकि परमात्मा सर्वथा निष्पाप है। परमात्मा को वंदन करने से अवंदनीय पदार्थों को वंदन करने की कमी…

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आत्मपूर्ण दृष्टि

सभी जीवो को आत्मातुल्य देखने से स्वार्थवृत्ति निर्बल बनती है और नि:स्वार्थ वृत्ति प्रबल बनती है। सिद्ध भगवंत सभी जीवो को तुल्य दृष्टि से और पूर्ण दृष्टि से साक्षात देखते हैं। किसी भी जीव को परिपूर्ण देखना, यह जीवो पर के अनंत प्रेम को सूचित करता है। माता अपने बालक को जिस तरह पूर्ण दृष्टि से देख सकती है, उसी…

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आनंद का जन्म

मनुष्य में सब के प्रति प्रेम का जन्म तब होता है जब स्वयं उसके भीतर आनंद का जन्म होता है। मुख्य प्रश्न आत्म अनुभूति का है। भीतर में आनंद होतो आत्म अनुभूति से प्रेम उत्पन्न होता है। जो अपने आत्यंतिक अस्तित्व से अपरिचित हैं, वह कभी आनंद को नहीं पा सकता। ‘स्वरूप में’ प्रतिष्ठा वही आनंद है। इस कारण अपने…

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पूर्णता की दृष्टि ही प्रेम का लक्षण

भगवान अनंत प्रेम से भरे हुए हैं, इस बात का स्वीकार यथार्थ रूप से होते ही भगवान के प्रति अनंत प्रेम उभरता है। दुनिया में ‘प्रेम’ नाम के जितने भी तत्व हैं, उन सभी में भगवान का स्थान सर्वोच्च है। भगवान के प्रेम जैसा प्रेम धारण करने की शक्ति भगवान के अलावा अन्य किसी में नहीं आ सकती। यह समझ…

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पूर्ण प्रेमानंदमयता का प्रयोग

ह्रदय में ज्योतिर्मय प्रतिमा की कल्पना करना, चतुर्मुख कल्पना अधिक अनुकूल बनेगी। प्रकाश में उज्जवल वर्ण के भगवान का थोड़े क्षण ध्यान करना चाहिए। भगवान प्रेम रूप है। ह्रदय में रहे भगवान में से चारों और प्रेम की फुहारे उठती है। इन फुहारों का प्रवाह अपने शरीर में फैलता है। अपने खून की बूंद-बूंद और आत्मप्रदेश प्रेमरूप बनते हैं। हम…

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