Story Of The Day
Archivers
प्रभु, प्रेम और विश्वास
साधक के लिए दु:ख का भय और सुख की आसक्ति दोनों त्याज्य है। स्वयं को देह स्वरूप मानने में स्वयं के ज्ञान का अनादर है। इच्छा, द्वेष, सुख, दु:ख आदि विकारों की उत्पत्ति देहभाव से होती है। इच्छा पूर्ति करना कठिन है परंतु उसका त्याग करना कठिन नहीं है। इच्छा पूर्ति में जीव पराधीन हे, त्याग में स्वाधीन। प्रभु प्रेम…
तीर्थंकरत्व की महासत्ता
यह सब विचार करते हुए ऐसा लगता है कि विश्व में महासत्ता एक ही है और वह श्री तीर्थंकर परमात्मा के शासन की है। क्योंकि विश्व के परमकल्याण की सदा उनकी भावना रही है। उन्होंने विश्व को विश्व की के यथावस्थित स्वरूप से प्रकाशित किया है और उसी के आधार पर मुक्तिमार्ग की साधना विश्व में अविच्छिन्न रूप से चल…
अनन्य उपकारी श्री तीर्थंकर भगवंत
इस जगत में जो कुछ भी सुख है, उसके कारण भूत जो प्रवृत्ति हो रही है वह तीर्थंकर भगवंतो के कारण है। जगत के जीव जो कुछ सुख पा रहे हैं उसमें उपकार श्री तीर्थंकरों का ही है । सुख पुण्य के उदय से मिलता है , पुण्य बंध प्रवृत्ति से होता है ,शुभ प्रवृति शुभ अध्यवसाय से होती है…
श्री अरिहंत का स्वरूप
षट्खंडागम के पांचवें वर्गणा खंड में, चौथे अनुयोग द्वार में26 वे सूत्र की व्याख्या में ध्येय अरिहंत स्वरूप है। उसमें कुछ विशेषण निम्नानुसार है- राग रहित होने पर भी सेवकजन के लिए कल्पवृक्षतुल्य है। द्वेषरहित होने पर भी स्व-समय-आत्मधर्म से विमुख जीवो के लिए कृतांत समान अरिहंत भगवान को नमस्कार हो। दर्पण में संक्रान्त सर्व लक्षणों से संपूर्ण ऐसे मनुष्य…
भाव अरिहंत का स्वरूप
‘भाव अरिहंत’ के स्वरूप को जानने के लिए 33 विशेषण बताए गए हैं और वे प्रत्येक विशेषण कितने अर्थगंभीर हैं, यह समझाने के लिए पूज्य श्री हरीभद्रसूरीश्वर जी महाराज ने असाधारण प्रयास किया है। इस प्रयास के फलस्वरूप हमें जानने को मिलता है कि श्री तीर्थंकर भगवान का संबंध तीन लोक के साथ रहा हुआ है। उन्होंने तीनों लोकों के…