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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 30
आर्यरक्षित ने कहा- “बन्धु! तुम्हारी बात बिल्कुल ठीक है…. परंतु अभी विद्या अध्ययन चल रहा है….. इसकी समाप्ति के बाद में भी मां की भावना पूर्ण करने के लिए दशपूर नगर आने की भावना रखता हूं। माता-पिता को सन्मार्ग प्रदान करके ही सचमुच उनके ऋण से मुक्ति पा सकते हैं। अतः विद्या अध्ययन की समाप्ति के बाद उस और विहार…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 29
फल्गुरक्षित अत्यंत ही ध्यानपूर्वक आर्यरक्षित की तत्ववाणी का श्रवण कर रहा था। फल्गु रक्षित ने कहा- पूज्यवर आपकी बात यथार्थ हीं है, फिर भी आत्मा में रहा मोह उछल ही पड़ता है। मैं आपके पास मां का संदेश लेकर आया हूं। “कहो मां का क्या संदेश है? मां कुशल है ना? आर्यरक्षित ने पूछा।” “पूज्यवर ऐसे तो मां कुशल ही…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 28
किसी जीव के प्रति राग भाव न होना, समुचित है……. परंतु स्नेह भाव/निस्वार्थ वात्सल्य भाव तो होना ही चाहिए न! अतः तू एक बार इधर आ जा! मेरे तेरे मुख दर्शन के लिए उत्कंठित बनी हूं। तेरा मार्ग प्रशस्य है और उसी मार्ग पर चलने की मेरी भी उत्कंठा है, इतना ही नहीं, मैं तो चाहती हूं कि तेरे पिता,…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 27
वह सोचने लगी, ‘आर्यरक्षित अभी कहां विहार कर रहे हैं? उनका मुझे पता नहीं है, अतः उनकी जांच के लिए छोटे पुत्र फल्गुरक्षित को भेज दूं तो ज्यादा ठीक रहेगा।’ इस प्रकार विचार कर उसने अपने मन की बात अपने पति सोमदेव को कही। सोमदेव ने कहा- प्रिये! आर्यरक्षित को बुलाने के लिए तूने फल्गुरक्षित को भेजने का जो निर्णय…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 26
समग्र विश्व में ज्ञेय पदार्थ अनंत है, अतः ज्ञान भी अनंत है। ज्यों-ज्यों पदार्थ के यथार्थ स्वरुप का बोध होता जाता है, त्यों त्यों योगियों का ह्रदय आनंद से भरता जाता है। उनका समग्र जीवन ज्ञान प्राप्ति के लिए ही होता है। जिस प्रकार ज्ञान असीम है, उसी प्रकार ज्ञान का आनंद भी असीम है। श्रुतज्ञान महासागर सम है। चौदह…