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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 20

एक शुभ दिन बुद्धि निधान आर्यरक्षित मुनिवर ने अन्य मुनिवर के साथ उज्जैन नगरी की ओर विहार प्रारंभ कर दिया। सभी मुनिवर विहार में आने वाले परिषह-उपसर्गों को अत्यंत समता-समाधि पूर्वक सहन करने लगे। धीरे-धीरे विहार यात्रा आगे बढ़ने लगी। इस प्रकार क्रमशः विहार करते हुए आर्यरक्षित मुनिवर उज्जैन नगरी के बाहर उद्यान में पहुंच गए इस उद्यान में महान…

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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 19

विनीत शिष्य की योग्यता जानकर एक दिन तोसली पुत्र आचार्य भगवंत ने ज्ञान पिपासु मुनिवर आर्य रक्षित को बुलाकर कहा, वत्स अवशिष्ट के पूवो के अभ्यास के लिए तुझे उज्जयिनी नगरी में युगप्रधान वज्रस्वामी के पास जाना होगा। “गुरुदेव! तब तो मुझे आप का विरह हो जाएगा?” “वत्स! जिसके दिल में गुरु के प्रति समर्पण रहा हो, उसे गुरु का…

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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 18

आर्यरक्षित स्वाध्याय की साधना में आकंठ डूब गए। स्वाध्याय के साथ-साथ संयम जीवन की प्रत्येक क्रिया भी वे उपयोग पूर्वक करने लगे। योग्य गुरु को योग्य शिष्य की प्राप्ति हो चुकी थी। तोसली पुत्र आचार्य भगवंत भी अत्यंत प्रेम व वात्सल्यपूर्वक नूतन मुनिवर आर्यरक्षित को ज्ञानदान कर रहे थे। नूतन मुनिवर भी अत्यंत नम्र, विनीत और ज्ञान पिपासु होने के…

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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 17

जिन शासन में गुरु की भी अपनी योग्यताएं बतलाई गई है। हर किसी को गुरु बनने का अधिकार नहीं है। गुरु पर शिष्य के आत्म हित की सबसे बड़ी जवाबदारी होती है। शिष्य का योगक्षेम करने की ताकत हो और जिसमें स्वपर हिताहित को जानने/सोचने व करने की शक्ति हो, वही गुरुपद प्राप्त कर सकता है और वही व्यक्ति गुरु…

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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 16

संसारी जीवो के रंग-राग से आचार्य भगवंत सुपरिचित थे, अतः उन्होंने कहा, महानुभाव! तुम्हारी बात सत्य है…….. संसारी जीवों के लिए ममत्व का एक मजबूत बंधन होता है और उस बंधन को तोड़ना उनके लिए अत्यंत कठिन होता है……. अतः तुम्हारी भावना अनुसार दिक्षा के पश्चात यहां से विहार की भावना रखता हूं। आचार्य भगवंत ने दीक्षा के लिए तत्पर…

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