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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 15
आचार्य भगवंत श्रमणोंपासीका रुद्रसोमा के जीवन से सुपरिचित थे……. रुद्रसोमा आचार्य भगवंत कि सांसारिक भगिनी थी। रुद्रसोमा के दिल में शासन उन्नति व रक्षा की जो प्रबल भावना थी……. उसे आचार्य भगवंत अच्छी तरह जानते थे। संसार में पुत्र मोह का एक जबरदस्त बंधन है। इस कठोर बंधन को तोड़ना कोई सामान्य बात नहीं है….. उसके लिए वज्र सा ह्रदय…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 14
‘सर्व साधुओं को वंदन करने के बाद गुरु चरणों में बैठे हुए श्रावक को भी प्रणाम करना चाहिए’ इस विधि का ज्ञान नहीं होने के कारण आर्यरक्षित ने वहाँ बैठे हुए श्रावक को प्रणाम नहीं किया। आर्यरक्षित कि इस अपूर्ण क्रिया को देखकर तोसलि पुत्र आचार्य भगवंत ने सोचा, यह कोई नवीन श्रावक लगता है, अतः आचार्य भगवंत ने उससे…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 13
इक्षुवाटिका के एक खंड में तोसलीपुत्र आचार्य भगवंत विराजमान थे। उस खंड में अनेक मुनिवर स्वाध्याय और ध्यान में तल्लीन थे। स्वाध्याय की शब्द ध्वनि सुन कर आर्यरक्षित द्वार पर ही खड़ा हो गया और असमंजस में डूब गया, अहो! यह जैन मुनि स्वाध्याय में मग्न बने हुए हैं। इनके पास कैसे जाना चाहिए? क्या बोलना चाहिए? किस प्रकार बातचीत…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 12
ऊषा रानी का सोनेरी पालव सरोवर के सुमधुर जल पर फैल गया था। पूर्व दिशा में मृदु और शीतल वायु चारों दिशाओं में नवीन जीवन भर रहा था। कोयल का कूजन प्रारंभ हो चुका था। मां की शुभ आशीष लेकर आर्य रक्षित ने इक्षुवाटिका की और प्रस्थान किया। मन में उत्साह और उमंग हो तो चरणों में भी सहज गति…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 11
दीक्षा स्वीकार स्वप्न की दुनिया बड़ी विचित्र है। स्वप्न- सृष्टि मानव ह्रदय में अनेक प्रकार के उत्पाद भी मचाती है और आशा की उज्जवल किरणे भी चमका देती है। स्वप्न की अगम्य कल्पना में मानव कभी नंदनवन में पहुँच जाता है . . . तो कभी मरुभूमि की भयावह रेगिस्तान में भी । कभी हर्ष से नाच उठता है. .…