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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 35

“खैर! अब तुम पुनः नगर के बाहर जाओ। मैं राजा को विज्ञप्ति करूंगा और वह तुम्हारा भव्य प्रवेश महोत्सव करेगा…… फिर तुम इस श्रमण वेष का त्याग कर देना….. और ग्रहस्थाश्रम का स्वीकार करना। “तुम्हारे गुण और रूप के अनुरूप मैंने तुम्हारे लिए कन्या खोज लि है। वैद-विहित विधि के अनुसार तुम्हारा विवाह किया जाएगा……. जिससे तुम्हारी माता को भी…

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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 34

परिवार का उद्धार आचार्य पद से अलंकृत आर्यरक्षित सुरीवर शासन के ऐसे ही अनोखे प्रभावक पुरुष थे। गुरुदेव के वियोग के बाद समस्त शासन और संघ की जवाबदारी उन पर थी। वे शास्त्रगामी थे……… ज्ञानी थे……. दक्ष थे…… गीतार्थ थे….. प्रभावक थे…… प्रवचनकार थे…… सर्वजीवचिंतक थे। जिनशासन की अजोड़ प्रभावना करते हुए वे मालवा की भूमि पर विचर रहे थे।…

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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 33

नूतन आचार्य भगवंत आदि मुनिवर अपने गुरुदेव की सेवा में तैयार थे। आचार्य भगवंत अत्यंत ही सावधान थे। जिनशासन के रहस्य को उन्होंने मात्र जाना ही न था…….. उन रहस्यो को जीवन में आत्मसात भी किया था- इसी के फलस्वरुप उन्हें मृत्यु लेश भी भय नहीं था…… वह मृत्यु के स्वागत के लिए सुसज्ज से बने हुए थे। उनके मुख…

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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 32

आर्यरक्षित मुनिवर ने गुरुदेव के चरणों में प्रणाम किया। काफी समय के बाद गुरुदेव श्री के दर्शन हो रहे थे………. अतः गुरु दर्शन से उनका मन पुलकित हो उठा। उन्होंने गुरुदेव की कुशल पृच्छा की। गुरुदेव ने आर्यरक्षित को हृदय से आशीर्वाद दिए। गुरुदेव ने अपने ज्ञान के उपयोग से देखा- मेरा आयुष्य अब अल्प है और आर्यरक्षित आचार्यपद के…

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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 31

आर्यरक्षित की यह बात सुनकर वज्र स्वामी जी ने अपने ज्ञान का उपयोग लगाया। श्रुत के उपयोग से उन्होंने जान लिया कि मेरा आयुष्य अल्प है…… अतः आर्यरक्षित मुझे पुनः मिल नहीं पाएगा। आर्यरक्षित कि इतनी ही योग्यता होने से वह आगे के श्रुत का अध्ययन नहीं कर पाएगा और प्रभु महावीर के शासन में अंतिम दशपूर्व का ज्ञान मेरे…

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