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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 40

पुष्यमित्र महान प्रभावक आर्यरक्षित सूरीजी महाराज के गच्छ में अनेक विद्वान और प्रभावक मुनिवर थे। आर्यरक्षित सुरिश्वर विविध क्षेत्रों में विहार करते हुए जिनशासन की अजोड प्रभावना कर रहे थे। उनके शिष्य परिवार में चार मुख्य प्रकांड विद्वान शिष्य थे।- (1) दुर्बलिका पुष्यमित्र (2) विंध्य (3) फल्गुरक्षित और (4) गोष्ठामाहिल। दुर्बलिका पुष्यमित्र अर्थात स्वाध्याय की साक्षात मूर्ति! वे ज्ञान के…

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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 39

आर्यरक्षित की बात शिष्य समझ न सके……. फिर भी उन्होंने गुरु आज्ञा को ‘तहत्ति’ कर स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन आर्यरक्षित सूरिवर विहार कर पास के गांव में चले गए। सोमदेव मुनि वहीं ठहरे हुए थे। सभी शिष्य गोचरी लाकर वापरने लगे, किंतु उन्होंने सोमदेव मुनि को आमंत्रण नहीं दिया। 2 दिन तक वे भूखे रहे और तीसरे दिन आर्यरक्षित…

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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 38

मुनि के स्वर्ग-गमन के बाद उनके मृत देह को पठारने की क्रिया के लिए अनेक गीतार्थ मुनि तैयार हो गए तभी कल्पित कोप करते हुए सूरिवर बोले, ‘क्या सभी पुण्य के कार्य तुम ही करोगे? क्या मेरे स्वजन में से किसी को करने नहीं दोगे? आर्यरक्षित की यह बात सुनकर पिता मुनि बोले, यदि इस कार्य में महान पुण्य हो…

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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 37

बस आर्यरक्षित सुरिवर के उपदेश अमृत का पान कर सोमदेव शिवाय सभी दीक्षा के लिए तैयार हो गए। आर्यरक्षित ने अपनी माता सभी को शुभ मुहूर्त में दीक्षा प्रदान की। “सभी की दीक्षा हो जाने पर सोमदेव ने कहा, में भी दीक्षा लेने के लिए तैयार हूं, परंतु मुझे कुछ वस्तुओं की छूट दो।” आर्यरक्षित ने पूछा, “कौनसी छूट चाहते…

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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 36

मैंने संसार के नश्वर स्वरूप को अच्छी तरह से जान लिया है……. अतः इस महान आहर्ती प्रवज्या को स्वीकार कर पुनः इसके त्याग की मूर्खता क्यों करूं? यह तो मुझे महान पुण्य उदय से प्राप्त हुई है। इसके त्याग की इच्छा मूर्खता ही है। गन्धक कुल में उत्पन्न हुआ सर्प, वमन किए हुए जहर को पुनः नहीं पीता है…. वह…

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