Story Of The Day

Archivers

पुण्य का पोषण-पाप का शोषण
nutrition-of-virtue-exploitation-of-sin

शरीर वाहन के स्थान पर है, बाहिर आत्मा पशु के स्थान पर और अंतरात्मा पर्षदा के स्थान पर हैं। देह तरफ दृष्टि जीव को पशु बनाती है और आत्मा तरफ दृष्टि जीव को दिव्य बनाती है। आत्मा मन, वाणी और कर्म से भिन्न है, यह तीन किले भी कहलाते हैं, इनको जीतने पर भगवान दिखते हैं। राग, द्वेष और मोह…

Read More
नौ पुण्य की उत्पत्ति-नवपद
origin-of-nine-virtues

9 प्रकार के पुण्य से 9 प्रकार की वस्तुओं की प्राप्ति होती है। एक भी वस्तु ना मिले तो जीवन दुष्कर बन जाता है। उनमें वस्तुओं में अन्न, जल, वस्त्र आदि का समावेश होता है। दिये बिना मिलता नहीं, बोए बिना उगता नहीं, ऐसा नियम है। जो मिला है, उसका कोई मूल्य न गिनकर दुरुपयोग करना और जो नहीं मिला…

Read More
अहिंसा और समापत्ति
non-violence-and-end

अहिंसा पालन के लिए क्रोध निग्रह की आवश्यकता है। संयम पालन के लिए इंद्रियों के निग्रह की आवश्यकता है। तप की आराधना के लिए इच्छानिरोध की जरूरत है। सभी जीवो के साथ औचित्यभरा वर्तन अहिंसा है। स्वयं की आत्मा के साथ औचित्यभरा वर्तन संयम है। परमात्मा के साथ औचित्य भरा वर्तन वह तप है। समापत्ति यह ध्यानजन्य स्पर्शना है। अनंत…

Read More
नौ पुण्य और नवपद का संबंध
Relation-of-nine-virtues-and-newborn

यह नौ पुण्य क्रमशः पुण्यानुबंधी पुण्य के कारण है और आत्मा के विकास की प्रारंभिक अवस्था है। नवपद यह आत्मा के विकास का शिखर है, उस शिखर पर पहुंचने के लिए नवपद के ही अंशरूप इन नौ पुण्यो में प्रव्रत्ति करनी चाहिए, ऐसी परमात्मा की आज्ञा है। इन सभी पुण्य का पात्र में सदुपयोग करने से किस प्रकार 18 पापों…

Read More
अठारह पाप और नवधा पुण्य
eighteen-sins-and-ninth-virtue

आत्मा की विकासयात्रा का प्रारंभ और पूर्णाहुति भी पुण्य से होती है। पुण्य के शिखर पर पहुंचने के लिए भी दो प्रकार के पुण्य का आधार और उनका पालन करना जरूरी है। पाप की अशुद्धि को दूर करने के लिए और भाव की शुद्धि प्राप्त करने हेतु पुण्य जरूरी है। नौ पुण्य अत्यंत व्यापक है। उनमें सभी प्रकार के लौकिक…

Read More

Archivers