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पुण्य से शुद्ध उपयोग
अशुद्ध में से शुद्ध की ओर जाने के लिए शुभ भाव यानी की पुण्य का आश्रय लेना जरूरी है। शुभ भाव के आलंबन बिना आत्मा का अशुद्ध उपयोग दूर नहीं होता एवं शुद्ध उपयोग की प्राप्ति नहीं होती। राग-द्वेष और मोह के अधीन बनी आत्माओं का उपयोग अनादिकाल से अशुद्ध बना है। उसे शुद्ध बनाने के लिए मन-वचन-काया की शुभ…
मोक्ष भी परोपकार स्वरूप
एक आत्मा सिद्धपद प्राप्त करती है, तब अव्यवहार राशि में से एक जीव का उद्धार होता है। इस नियमानुसार अपने ऊपर भी सिद्ध भगवंत के उपकार का ऋण, उपकार का भार रहा है। मुक्त अवस्था यानी सिद्ध पद, यह परोपकारमय अवस्था है ऐसा एक अपेक्षा से कह सकते हैं। क्योंकि सिद्ध भगवन्त पूर्ण और कृतकृत्य होते हैं। वे आत्मा के…
पुण्य से पुण्य की वृद्धि
जिस प्रकार धन से धन बढ़ता है, उसी प्रकार पुण्य से पुण्य बढ़ता है। पुण्य से प्राप्त मन-वचन-काया की शक्ति का या धन-धन्यादि बाह्य पदार्थों का दूसरों के हित के लिए उपयोग करके उसका हर्ष-आनंद मानने से पुण्य का भंडार अखूट बनता है। जबकि अपनी सामग्री का स्वयं ही आसक्ति पूर्वक भोग या उपभोग करके उसका आनंद ले तो भरा…
शुद्धि प्रदाता पुण्य
गुणप्राप्ति का उपाय कृतज्ञता, परोपकार आदी सद्गुणों की प्राप्ति गुणीजनों के बहुमान से होती है। गुणानुराग और गुण बहुमान से अपनी ह्रदय भूमि में गुण रूप बीज का वपन होता है। पूर्ण गुणी परमात्मा और परम गुणी सद्गुरु आदि गुणी पुरुषों का आदर, बहुमान, उनकी सेवा भक्ति तथा आज्ञापालन करने से अपने चित्त रत्न के ऊपर रही दुर्गुणों की मलिनता…
स्वार्थ परिहार
अहिंसा आदि व्रतों के पालन में या मैत्री आदि भावनाओं में अपनी आत्मा के उपकार का लक्ष्य हो और अन्य जीवो की पीड़ा के परिहार या हित चिंतन आदि की प्रवृत्ति हो, तो ही वह धर्म-अनुष्ठान स्व-पर उपकारक बन सकता है। अन्यथा सिर्फ स्वयं की पीड़ा के परिहार या स्वयं की हितचिंता की प्रवृत्ति से आत्म-कल्याण होता हो, तो प्रत्येक…