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ब्रह्मा भाव का प्रभाव

बाह्य औदारिक शरीर समान होने पर भी अंदर के मानस शरीर और तेजस कार्मण शरीर सभी के भिन्न-भिन्न होते हैं । मानस शरीर बोधात्मक और कार्मण शरीर वासनात्मक होता है । वासना के भेद से बौध में भेद भिन्नता भी होती है । इसलिए समान आकृति वाले मनुष्य के गुण से और रुचि से भिन्न होते हैं। ऐसी समझ जिसके…

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आत्मा के आधार पर जीवन

जो मनुष्य आत्मा के आधार पर जीवन जीने का प्रयास करता हो, उसके ध्यान में सृष्टि की अतथ्यता ,असारता, क्षणभंगुरता स्थिर होनी चाहिए।उसके चित्त में सृष्टि के प्रति वैराग्य के ही विचार निरंतर चलते रहते हैं। फिर भले ही प्रारब्ध के संबंध से आए हुए उचित कार्यों को उसे करना पड़ता हो फिर भी आत्मा के आगे देह की समग्र…

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आत्मा की शक्ति

प्रतिकूल परिस्थिति में भी शांति किस प्रकार बनाए रखें ? यह प्रश्न बहुत महत्व का है । संसार है तब तक अनुकूल एवं प्रतिकूल प्रसंग तो खड़े होने ही वाले हैं । प्रतिकूल प्रसंग प्रतिकूल लगने पर भी हमें उन्हें सहर्ष स्वीकार करना चाहिए । एक अपेक्षा से प्रतिकूल परिस्थितियों उपकारक है । क्योंकि जब प्रतिकूल परिस्थिति आती है तब…

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आत्ममय चित्तवृत्ति

चित्र को अलग-अलग वृत्तियों को धारण करते हुए रोकना उसका नाम योग है । चित्र की विभिन्न वृत्तियों को रोकना यानी वृत्तियों का विलीनीकरण उसे योग कहते हैं । चित्तवृत्ति सच्चिदानंद का एक विशेष स्फुरण है। वृत्तियां निर्मल और स्थिर बन जाए तब आत्मा स्वयं को पहचान सकती है । वैराग्य से वृत्तियां निर्मल बनती है और अभ्यास से स्थिर…

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आत्मध्यान

आत्मानुभव करने के लिए जितनी जरूरत वैराग्य की है, विषयों और कषायों को मंद करने की है उतनी जरूरत आत्मध्यान की भी है। आत्मध्यान के लिए सुबह का समय श्रेष्ठ है । सुबह ब्रह्मा मुहूर्त में निंद्रा का त्याग कर, आत्मध्यान के लिए अभ्यास करने से वह शीघ्र फलीभूत होता है। ध्यान के समय आनेवाले अन्य विचारों को रोकने के…

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