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युगप्रधान वज्रस्वामी – भाग 8

कुछ देर बाद धन गिरी मुनि ने राजोहरण बताते हुए कहा ,हे बाल वज्र! यदि तूं धर्म को भजना चाहता है तो कर्म रूपी रज का मार्जन करने में समर्थ इस रजोहरण को धारण कर ।कर्म के बंधन से ग्रस्त जीव अन्य सामग्री तो हर भव में सुलभ है किंतु कर्म का उच्छेद करने में समर्थ इस धर्म की प्राप्ति…

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युगप्रधान वज्रस्वामी – भाग 7

बस दूसरे ही दिन बाल व्रज के न्याय को पाने के लिए सुनंदा अपनी सखियों के साथ बालक के योग्य खिलौने व भोजन सामग्री लेकर राज सभा में उपस्थित हो गई। धनगिरी मुनि भी दूसरे दिन अपने साथी मुनियों के साथ वहां उपस्थित हो गए। दोनों पक्ष आमने-सामने बैठ गए। न्याय के लिए राजा भी बीच में बैठ गया। ठीक…

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युगप्रधान वज्रस्वामी – भाग 6

सुनंदा की हार संसार के संबंध स्वार्थ से भरे हुए है। सांसारिक संबंधों में हमें जहां-तहां स्वार्थ की बदबू दिखाई देती है। सुनंदा को जब इस बात का पता चला कि उसका बालक साध्वी जी के उपाश्रय में रहा हुआ है और वह एकदम शांत हो चुका है, वह साधु जी के पास आ पहुंची और अपने बालक को ले…

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युगप्रधान वज्रस्वामी – भाग 5

धर्म लाभ के आशीष सुनते ही सुनंदा की सखियाँ भी वहां आ गई। सुनंदा ने कहा; मैं इस पुत्र के रुदन के कारण अत्यंत ही कंटाल गई हूं . . . अतः आप इसे ग्रहण करें । आपके पास रहकर भी यह सुखी रहता हो तो उससे मुझे खुशी होगी। धनगिरी ने कहा, इस पुत्र को ग्रहण करने में मुझे…

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युगप्रधान वज्रस्वामी – भाग 4

यदि सकारण रुदन होता तो योग्य समाधान द्वारा उस रुदन को रोका जा सकता। सोए हुए को जगाया जा सकता है परंतु जो सोने का बहाना कर रहा हो, उसे जगाना शक्य नहीं है। नवजात शिशु के रुदन के पीछे अन्य कोई शारीरिक पीड़ा तो थी नहीं . . .अतः सुनंदा ज्यों-ज्यों उस शिशु को शांत करने का प्रयास करती,त्यों-त्यों…

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