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ब्रम्हचर्य सम्राट स्थूलभद्र स्वामी – भाग 13
रत्नत्रयी की निर्मल आराधना के द्वारा उन्होंने अपने ह्रदय को स्फटिक की भांति एकदम स्वच्छ बना दिया । उनकी आँखों निर्विकार बन चुकी थी । उनके मन में स्त्री या स्त्री देह के सौंदर्य का लेश भी आकर्षण नही था। संयम की साधना के फलस्वरूप अब उनके मन में स्त्री का देह एक मात्र हाड़ मांस की पुतली ही रह…
ब्रम्हचर्य सम्राट स्थूलभद्र स्वामी – भाग 12
महासत्वशाली स्थूलभद्र ने राज सभा में प्रवेश किया और जोर से राजा को धर्मलाभ की आशीष प्रदान की। मंत्री मुद्रा को स्वीकार करने के प्रसंग पर अचानक धर्मलाभ के शब्दो को सुनकर राजा भी चोंक उठा।’ अरे यह क्या! यह कोन ? स्थूलभद्र! क्या स्थूलभद्र ने साधुवेष स्वीकार कर लिया?’ राजा ने पूछा, क्या सोच लिया? ‘हाँ राजन्! मेने सोच…
ब्रम्हचर्य सम्राट स्थूलभद्र स्वामी – भाग 11
स्थूलभद्र ने महाराजा के चरणों में प्रणाम किया। राजा ने उसे सप्रेम आशीष दी। राजा ने पूछा, ‘ क्या तुम ही स्थूलभद्र हो ? ‘ ‘ जी! महाराजा! ‘ स्थूलभद्र ! तुम्हारे पिता के वियोग में रिक्त बने मंत्री पद को ग्रहण करने के लिए मेरा तुम्हे आमंत्रण है। ‘ ‘ राजन्! कुछ सोच विचार कर इस सम्बन्ध में अपना…
ब्रम्हचर्य सम्राट स्थूलभद्र स्वामी – भाग 10
राजसेवक ने कहा ,’शकटाल मंत्रीश्वर की अकाल – मृत्यु के बाद मंत्री पद का स्थान रिक्त बना हुआ है, जब महाराजा वह पद श्रीयक को देने लगे, तब श्रीयक ने वह पद लेने से इन्कार करते हुए कहा , ‘इस पद के लिए मेरा ज्येष्ठ बंधु अधिक योग्य है । ‘ अत:इस पद को ग्रहण करने के लिए महाराजा ने…
ब्रम्हचर्य सम्राट स्थूलभद्र स्वामी – भाग 9
महाभिनिष्क्रमण भवितव्यता के आगे पुरुषार्थ भी पंगु है। जो हानि है, उसे कोन टाल सकता है? शकटाल की अकाल मृत्यु से राजा को अत्यंत ही आघात लगा। उसे अपनी भूल का तीव्र पश्चात्ताप होने लगा। खाली पड़े मंत्री पद की पूर्ति के लिए राजा ने श्रीयक को बुलाकर कहा , श्रीयक! पिता के खाली पड़े स्थान की पूर्ति के लिए…