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ब्रम्हचर्य सम्राट स्थूलभद्र स्वामी – भाग 3
मंत्री के मुख्य से वररुचि के काव्यों की प्रशंसा सुनकर राजा ने तत्काल उस वररुचि को 108 सुवर्ण मुद्राएँ भेंट प्रदान की। बस ,अब तो प्रतिदिन वररुचि राजसभा में आकर नए- नए काव्य सुनाने लगा और राजा भी उसे प्रतिदिन 108 सुवर्ण मुद्राएँ भेंट देने लगा । मंत्री ने सोचा ,’अहो! यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई है।’ एक दिन…
ब्रम्हचर्य सम्राट स्थूलभद्र स्वामी – भाग 2
भोगो से होने वाली तृप्ति क्षणिक होती है। जिस प्रकार खुजली के दर्दी को खुजलाने पर पहले आनन्द की अनुभूति होती है, परन्तु बाद में तो खुजलाने से होने वाली पीड़ा से पछताना ही पड़ता है। बस, इसी प्रकार व्यक्ति ज्यों-ज्यों इन भोग सुखों का अनुभव करता जाता है, त्यों-त्यों भोग संबन्धी उसकी भूख दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है। जिस…
ब्रम्हचर्य सम्राट स्थूलभद्र स्वामी – भाग 1
भारत देश! पाटलीपुत्र नगर!! नौवां नंद राजा !!! नंद राजा अत्यंत ही पराक्रमी और प्रजा वत्सल था। उस राजा के कल्पक वंश के कुल तिलक समान शकटाल नाम का मुख्य मंत्री था। जो अत्यंत ही न्यायप्रिय और बुद्धिनिधान था। उस मंत्री के लक्ष्मीवती नाम की मुख्य स्त्री थी। सद्धर्म प्रवृत्ति में वह अत्यंत ही आदर वाली थी। शील ही उसके…