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मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 8

‘छूटने का उपाय कल आप स्वयं कुलपति से ही पूछ लेना । वे सब कल अपने महल पर पधारनेवाले ही हैं ना ?’
‘हां,…. सही बात है तुम्हारी देवी । कुलपति को कल ही पूछ लूंगा । परंतु कल उन महात्माओं की भक्त्ति-पूजा और आदर-सत्कार में किसी भी तरह की कमी नहीं रहनी चाहिए। ‘
‘स्वामिनाथ, किसी भी प्रकार की कमी नहीं रहेगी । मैं स्वयं खड़ी रहकर सारी तैयारियाँ करवाऊंगी । वे पधारेंगे तब उनकी सेवभक्ति का पूरा खयाल करुंगी ।’
‘ऐसे संसारत्यागी, ज्ञानी और तपस्वी महात्माओं की सेवा – भक्त्ति करने के लिए , अरण्यवासी बने हुए पिताजी मुझे बार – बार प्रेरणा देते थे ।’
‘और , अरण्यवास में रहे हुए आपके माताजी ने मुझे भी संतसेवा के लिए प्रेरणा दी थी ।’
‘देवी, विशेष तो…. पाँच दिन के बाद जब महातपस्वी अग्निशर्मा अपने वहाँ पधारेंगे , तब बहुत सावधानी एवं खयाल रखना होगा । चूंकि उन्हें पहले घर में ही पारणा करने की प्रतिज्ञा है । यदि पहले घर में पारणा नहीं होता किसी कारणवश…. तो वे और घर जाकर पारणा नही करते हैं , वरन दूसरे महीने के उपवास चालु कर देते हैं ।’
‘बड़ी कठिन प्रतिज्ञा है यह तो ?’
‘बहुत ही कठिन और कड़क प्रतिज्ञा है , और इस तरह इन महातपस्वी ने लाखों मासक्षमण (महीने के उपवास) किये हैं ।’
‘ओह ! तब तो उनका शरीर केवल हड्डियों का ढांचा बन कर रह गया होगा ?’
‘सचमुच , वैसा ही शरीर ही गया है । परंतु उन महात्मा को शरीर पर ममत्व ही कहाँ है ? शरीर के प्रति निःस्पुह बने हुए उन महात्मा , का समताभाव भी गजब का है । उनके चेहरे पर कितना उपशमभाव झिलमिलाता है । उनका कुरुप शरीर अब कुरुप नहीं लगता ।’
कुछ सोचकर रानी ने पूछा : ‘वसंतपुर में उन महात्मा का बड़ा मान-सन्मान होगा ?’

आगे अगली पोस्ट मे…

मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 7
March 16, 2018
मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 9
March 16, 2018

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