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मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 7

राजमहल में जब पहुंचे तब दूसरा प्रहर पूरा हो चूका था। भोजन बगैरह से निवृत्त होकर राजा ने विश्राम किया। परंतु राजा को नींद आई नहीं । बार – बार वे गहरे विचारों में डूब जाते थे। महारानी वसंतसेना ने जान लिया : ‘आज महाराजा स्वस्थ नहीं है। किसी गंभीर विचार में डूबे हुए है । ‘
रानी आकर राजा के पलंग के पास रखे हुए भद्रासन पर बैठ गई । राजा ने रानी को समीप में बेठी हुई देखी। दोनों की आंखें मिली । रानी ने मौन तोडा :
‘स्वामिन , आप किसी गंभीर विचार में हैं …। क्या मैं जान सकती हूं उस विचार को , जिसके कारण आप इतनी परेशानी…. इस कदर बेचैनी का अनुभव कर रहे हैं ?’
गुणसेन पलंग पर बैठ गये । उन्होंने कहा :
‘देवी, मैं खुद ही नहीं समझा पाता हूं… कि मुझे क्या हो रहा है…। तरुण अवस्था में मैं कितना क्रूर…. शरारती…. और परपीड़न में मौज मनानेवाला था….? उस कुरुप-बदसूरत अग्निशर्मा को मैंने और मेरे मित्रों ने कितना घोर दुःख दिया था। किस कदर उसकी घोर कदर्थना की थी…? ये सारी दुःखद बातें आज स्मृति में उभर आई हैं यकायक ।’
‘पर कैसे ?’
‘तपोवन में वही अग्निशर्मा दूसरे ही स्वरुप में आज मिल गया। महान तपस्वी के रुप में , महान तापस के रुप में ।’
लाखों बरसों की समय – मिट्टी ने ये बातें दबा दी थी… आज मैंने उस महात्मा के मुंह से मेरा नाम सुना, और धीरे धीरे…. मैंने उन्हें पहचान लिया। मेरी पहचान भी दी मैंने उस महात्मा को ।
‘तब तो वे बड़े ही गुस्सा हुए होंगे आप पर ?’
‘नही…. नहीं, उन्होंने तो मुझे अपना कल्याणमित्र माना है। मेरे द्वारा किये गये पराभव को , दिये गये संत्रास को तो वे वैराग्य का कारण मानते हैं। और देवी! क्या उनकी मीठी वाणी है। उन्होंने मेरे तमाम अपराधों की क्षमा दे दी। इसलिए मैं काफी हल्कापन महसूस कर रहा हूं…। और मेरे उस तरुण अवस्था के दुष्कुत्यों की कटुता मुझे ग्लानि दे रही है ।’
परंतु स्वामिन , उस महात्मा के मन में जब कटुता नहीं है… फिर आप क्यों इतनी ग्लानि महसूस कर रहे हैं ?’
‘वे तो क्षमा देकर हल्के हो गये…। तापस बनकर , घोर तपश्चर्या कर के उन्होंने तो जीवन की सफलता अर्जित कर ली । परंतु मेरे किये हुए पापों से मेरा क्या होगा ? उन पापों से मेरी मुक्त्ति कैसे होगी ? मुझे यह बात प्रति पल सता रही है…। लाखों – बरस पहले की वे सारी बातें जब से यादों के आईने में उठती हैं….मैं तीव्र व्यथा से पीड़ित महसूस कर रहा हूं अपने आप को ।’
‘परंतु, अपने उन महात्मा की क्षमा भी तो मांग ली है ना ? अपराधों की क्षमा मांगकर आप भी उस पाप से छूट गये ना ?’
‘ऐसे कैसे छूटा जा सकता है ?’

आगे अगली पोस्ट मे…

मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 6
March 16, 2018
मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 8
March 16, 2018

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