झींझुवाड़ा के इसी कांतिभाई को अल्सर की बीमारी हुई। डॉक्टर ने दवाओ के साथ खास सूचना की कि तुम अपने पास चौबीस घंटे दूध और बिस्किट रखना और जलन होने होते ही तुरंत खाना। कांतिभाई ने कहा, “डॉक्टर! रात्रिभोजन तो मैं करूंगा ही नहीं।” डॉक्टर ने स्पष्ट कहा कि रात को भी तुम्हें खाना पड़ेगा, नहीं तो यह तकलीफ खूब बढ़ेगी। सत्वशाली कांतिभाई ने रात्रिभोजन के भयंकर पाप का त्याग करके मासक्षमण का निर्धार किया! रिश्तेदारों ने खूब समझाया लेकिन नहीं माने। अंत में कहा कि पच्चखाण एक,एक उपवास का लो। तब उन्होंने कहा कि मुझे तो एक साथ ३० का ही लेना है लेकिन गुरुदेव नहीं देते। इसलिए सोलह का लूंगा। १६ कर बाद में १४ उपवास का लेकर मासक्षमण अच्छी तरह से पूर्ण किया!पारणा भी अच्छा हुआ। इसके बाद तीखे पदार्थ भी खाते। एक बार डॉक्टर को दिखाने गए। जांच कर डॉक्टर ने कहा कि तुम अच्छे हो गए हो। कौन सी दवा ली? कैसे बीमारी मिटी?तब कांतिभाई ने कहा कि दवा, दूध आदि कुछ लिया नहीं। मासक्षमण किया । डॉक्टर को बहुत अचरज हुआ।
यह पढ़ कर आप सिर्फ तालियां बजाएंगे? इतना सत्व न हो तो बीमारी में डॉक्टर बताएं उन अभ्यक्ष दवाओं का सेवन, रात्रिभोजन, कंदमूल आदि बड़े पाप तो कभी न करना।