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वैराग्य और भक्ति
भवनिर्वेद और भगवद बहुमान एक ही प्रयोजन की सिद्धि के लिए 2 उपाय है। भगवान भव से मुक्त हो गए हैं यानी विषय कषाय से सर्वथा रहित बन गए हैं। इस कारण विषय-कषाय से मुक्ति की इच्छा यह भगवद बहुमान है। दोषदर्शन रूप वैराग्य द्वारा विषयों से मुक्ति और गुणदर्शन रूप भक्ति से कषायों से मुक्ति मिलती है। कषायों की…
देव गुरु की भक्ति
नामस्मरण और पूजा-पाठ ये भक्ति के बाह्य लक्षण है। भक्ति का अभ्यंतर लक्षण आज्ञा-पालन और सर्वसमर्पण है। ज्ञान एक साधना है, साध्य सर्वमंगल है, जिसे देव पर परम भक्ति है और गुरु पद पर भी ऐसी परम भक्ति है उसे यह पदार्थ-परमार्थ तत्त्व प्रकाशित होता है, पूर्ण रूप से समझ में आता है, ग्राह्य बनता है। देव के ऊपर जैसी…
वैराग्य से आत्मदर्शन
विपाक की विरासता का रूप दोषों के दर्शन से उत्पन्न हुआ वैराग्य अपर वैराग्य है और आत्मा के अनुभव से उत्पन्न हुआ वैराग्य यह पर वैराग्य है। विषयों में कितने ही दोष दिख जाए परंतु जब तक जीव को देह अध्याय है, देह में निजत्व का दर्शन है, तब तक विषयों का अध्यास भी कायम रहता है। जब तक देह…
भक्ति, वैराग्य और ज्ञान
भक्ति में वैराग्य और ज्ञान है क्योंकि जिनकी भक्ति करनी है, उन्होंने संसार को नि:सार माना है और मोक्ष को ही सारभूत माना है मोक्ष का लाभ और संसार का अंत आत्मज्ञान से ही किया है, इस कारण मोक्ष में गए हुए, मोक्ष में जानेवाले और मोक्षमार्ग में रहे जीवो पर की भक्ति यह वैराग्य की ही भक्ति है और…
भक्ति से अहंकार का नाश
भक्ति बिना चित्त की शांति पाना अशक्य है। क्योंकि अशांति का बीज अहंकार है। इस कारण जप-तप-श्रुत करने की भावना जिनकी करुणा कृपा से होती है, उन्हें निरंतर स्मरण करने से अहंकार पैदा नहीं होता। संत पुरुषों की करुणा विश्व पर सदा बरसती रहती है और सभी जीवो के उत्थान में सहाय करती है। ऐसा स्वीकार किए बिना भक्ति पैदा…