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ब्रम्हचर्य सम्राट स्थूलभद्र स्वामी – भाग 21

ज्ञान प्राप्ति
भवितव्यता के योग से जगत में परिस्थितियाँ बदलती रहती है। उस समय 12 वर्ष का भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल के कारण साधुओं को भिक्षा की प्राप्ति दुर्लभ बनती गई . . . परिणामस्वरूप भूख से पीड़ित अनेक मुनि स्वाध्याय करने में असमर्थ बनते गए । फलस्वरूप श्रुत व सिद्धान्त का विस्मरण होने लगा। पाटलीपुर नगर में समस्त श्रमण- संघ इकट्ठा हुआ। जिस मुनि को जिस सूत्र का जो अध्ययन याद था, उसे इकट्ठा किया गया . . . इस प्रकार श्री संघ ने मिलकर ग्यारह अंगों का संयोजन किया।
उस समय 12 वें दृष्टिवाद को जानने वाले एक मात्र भद्रबाहु स्वामी ही थे, जो नेपाल देश में महाप्राण नाम का ध्यान कर रहे थे।
उस समय अन्य साधुओं के दृष्टिवाद के अभ्यास के लिए श्री संघ ने दो मुनियों को तैयार कर भद्रबहुस्वामी जी के पास भेजा।
उन दोनों मुनियों ने प्रणाम करके कहा, `गुरुदेव ने आपको पाटलीपुत्र नगर में पधारने के लिए आदेश दिया हैं।’
भद्रबाहु स्वामी ने कहा,`अभी मैं महाप्राण ध्यान कर रहा हूँ , अतः अभी तो मैं वहां नहीं आ सकूंगा ।’
उन दोनों मुनियों ने आकर श्रीसंघ व गुरुदेव को बात बता दी।
भद्रबाहु स्वामीजी के इस प्रत्युत्तर को जानकर श्रीसंघ व गुरुदेव ने पुनः दो शिष्यों को तैयार कर भद्रबाहु स्वामी जी म.के पास भेजा।
उन दोनों शिष्यों ने जाकर भद्रबाहु स्वामी जी म. को पूछा ,`यदि कोई संघ की आज्ञा नहीं मानता हो तो उसे क्या दंड देना चाहिये ? ‘
भद्रबाहु स्वामी जी ने कहा,`उसे संघ के बहिष्कृत के देना चाहिये? ‘
उन शिष्यों ने कहा, ‘इस वचन से तो आप ही संघ के बहार हो जाते है।’
भद्रबाहु स्वामी जी ने कहा, ‘मैं संघ की आज्ञा शिरोधार्य करता हूँ, परन्तु अभी मेरा महाप्राण ध्यान चालू होने से मुझे अधिक अवकाश नहीं मिल पा रहा है , फिर भी यदि दृष्टिवाद के अभ्यास के लिए जो मुनि यहाँ पधारेंगे, उन्हें मैं प्रतिदिन सात वाचना प्रदान करूंगा और ध्यान की समाप्ति के बाद विशेष वचनाएँ भी दे सकुंगा । इस प्रकार करने से मेरा कार्य भी सिद्ध होगा और संघ की आज्ञा का भी पालन हो सकेगा ।
भद्रबाहु स्वामी जी के इन वचनों को सुनकर वे दोनों मुनिवर अत्यंत सन्तुष्ट हुए। उन्होंने जाकर संघ व गुरुदेव को बात बताई।
भद्रबाहु स्वामी के इस प्रत्युत्तर को जानकर संघ भी प्रसन्न हुआ और श्रीसंघ ने स्थूलभद्र आदि 500 मुनियों को दृष्टिवाद सिखने के लिए भद्रबाहु स्वामी जी के पास भेजा ।
भद्रबाहु स्वामी जी अपनी अनुकूलतानुसार प्रतिदिन 7-7 वाचनाएँ देने लगे । परन्तु अन्य साधु तो अध्ययन करते करते
उदविग्न बन गए. . . परिणाम स्वरूप स्थूलभद्र को छोड़कर सभी मुनि अन्यत्र चले गए।
स्थूलभद्र के मनोभंग को देखकर भद्राबाहुस्वामी ने पूछा ,`तू खेद क्यों पा रहा है?’
स्थूलभद्र ने कहा,`अल्प वाचना के कारण।’
भद्रबाहु स्वामी जी ने कहा, `तूं चिंता मत कर मेरा ध्यान लगभग पूर्ण होने आया है । ध्यान की समाप्ति के बाद मैं तुझे पूर्ण सन्तुष्ट करने की कोशिश करूँगा।’
कुछ समय बाद भद्रबाहुस्वामी का महाप्राण ध्यान पूर्ण हो गया। उसके बाद वे स्थूलभद्र को खूब वाचनाएँ देने लगे – परिणाम स्वरूप वे अल्पकाल में ही दशपूर्व के ज्ञाता बन गए।

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