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क्षितिप्रतिष्टित नगर में – भाग 9
राजा ने कल्याणक को अपने निकट बुलाकर,उसके सिर पर हाथ रख कर कहा। वत्स, सचमुच तू पुण्यशाली है कल्याणक।तूने तेरी इन दो आँखो को उस महापुरुष के दर्शन से धन्य बना दी। यदि कोई विघ्न नही आया तो कल सवेरे में उन आचार्य भगवंत के दर्शन करने लिये जाऊँगा। महाराजा ने कल्याणक को प्यार से रत्नहार अर्पित किया। सभा का…
क्षितिप्रतिष्टित नगर में – भाग 8
नगरश्रेष्ठि और मंत्रिमंडल के सदस्य सुंदर-बहुमुल्य भेट-सौगाते लेकर आये थे। राजा को सारे उपहार अर्पित किये गये।नृत्यगनाओ के थिरकते पावों में छनकते-खनकते घुघरुओ की ध्वनि राजसभा को खुशी में डुबोती रही। सगींतकारो ने दिल खोलकर अपनी कला का प्रदर्शन किया। सभी झूमने लगे,हँसी और खुशीयो के आलम में घूमने लगे वाह वाह के शब्द सुमन होठो को चूमने लगे। महाराजा…
क्षितिप्रतिष्टित नगर में – भाग 7
महाराजा ने कमरे का दरवाजा खोलकर, प्रतिहारी को बुलाकर, आज्ञा की! पुरोहित सोमदेव को अभी इसी वक्त बुला लाओ। प्रतिहारी महाराजा को प्रणाम कर चला गया और शिघ्र सोमदेव को लेकर वापस आ गया। सोमदेव ने महाराजा को प्रणाम किये और महाराजा के चरणों मे ही बैठ गये। सोमदेव ने महाराजा के सामने देखा फिर कुछ पल आंखे मूंदकर मुहूर्त…
क्षितिप्रतिष्टित नगर में – भाग 6
खैर, तपस्वी लोग अपने शरीर के प्रति निस्पृह होते हैं और अनशन कर के मृत्यु को प्राप्त होते है, इसका मुझे रंज नही है, मुझे अफसोस है उसके संकल्प का। सोमदेव को मिले हुए तापस ने सोमदेव को उसके संकल्प की बात की थी।वह तापस भी बात करते-करते रो पड़ा था। जनम-जनम मुझे मारने की उसकी तीव्र इच्छा उसके तापस…
क्षितिप्रतिष्टित नगर में – भाग 5
पारणे के दिन के अलावा दिनों ऐसी आकस्मिक घटनाए क्यों नहीं हुई? ऐसा कैसा योगनुयोग ? मेरे निर्मित ही उन महात्मा का ऐसा प्राणान्त कष्ट आना था क्या ?मेरी तो विशुद्ध भावना थी पारणा करवाने की। कोई दम्भ या चाल नही थी मेरे मन मे। मेरा मन साफ था। सचमुच, उस महात्मा के प्रति मेरे दिल मे बहुमान भाव था…