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मन की मुराद – भाग 6
राजपुरोहित को बुलाकर शादी का मुहूर्त निकलवा दे। जी हाँ, शुभ शीघ्रम! शुभ कार्य में विलम्ब नहीं करना चाहिए.. तो कल आप इसी समय यहाँ पधार जाना… मै राजपुरोहित को बुलवा लुँगा। जेसी आपकी आज्ञा! अब मै इजाजत चाहुंगा… घर पर जाकर अमर की माता को यह समाचार दूँगा तब तो वह अत्यंत आहाद से भर जायेगी। हा , आप…
मन की मुराद – भाग 5
धनावह सेठ, मै अपनी बेटी सुरसुन्दरी के लिए तुम्हारे सुपुत्र अमरकुमार की मंगनी करता हुँ… अमरकुमार को मेने कल राजसभा में देखा है…परखा है सुरसुन्दरी के लिए वह सुयोग्य वर है … कहो तुम्हे मेरा प्रस्ताव केसा लगा? मै तुम्हे इसलिये यहाँ बुलवाया है.. अभी। ‘ हो मेरे मालिक! आपके मुँह में घी- शक्कर! आपके इस प्रस्ताव पर मुझे जरा…
मन की मुराद – भाग 4
श्रेष्ठि धनावह और सेठानी धनवती तो सपना भी नहीं देख सकते थे की सुरसुन्दरी उनके घर में पुत्रवधु बन कर आये। जब पुण्यकर्म का उदय होता है तब न सोचा हुआ सुख मनुष्य को आ मिलता है, जब पापकर्म उदय में आते है तब अकल्पित दुःख टूट गिरता है मनुष्य के सर पर। दूसरे दिन सुबह जब श्रेष्ठि धनावह प्रभतिक…
मन की मुराद – भाग 3
रानी ने राजा से कहा- वह श्रेष्ठिपुत्र है.. ‘अमरकुमार ! ‘श्रेष्ठि धनावह का पुत्र अमर? हाँ, सुरसुन्दरी और अमर दोनों एक ही शाला में साथ साथ पड़े हुए है.. एक दूसरे को पहचानते है और मेने तो राजसभा में परीक्षा के दौरान इसी दृष्टिकोण से उसे परखने का प्रयत्न किया था की उसमे मेरी पुत्री के लिये योग्य वर बनने…
मन की मुराद – भाग 2
राजा अरिदमन और रानी रतिसुन्दरी में सारी विशेषताए सामान रूप से थी, इसलिये उनका गृहस्त जीवन निरापद था। उनका धर्मपुरुषार्थ निर्विघ्न था और सुरसुन्दरी के अंतर बाह्य व्यक्तित्व विकास भी वे उच्चस्तरियो कर सकते थे। आज ये दंपति चिंतामग्न बने हुए थे। अब वे सुरसुन्दरी की शादी मे विलंब नही करना चाहते थे। उम्र तो शादी के लीए योग्य थी…