महाराज अरिदमन का कक्ष रत्नदीपको से मिल- मिला रहा था। शयनगृह सुन्दर था। सुशोभित था। रात का पहला प्रहर चल रहा था। महाराजा अरिदमन सोने के रत्नजड़ित पलंग पर लेटे हुए थे। महारानी रातिसुन्दरी पास ही भद्रासन पर बेठी हुई थी दोनों के चेहरे पर चिंता की रेखाए अंकित थी। किसी गंभीर सोच में दोनों डूबे हो वेसा लग रहा…