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पिता मिल गये – भाग 6
‘ पंचपरमेंषठी भगवंतो की कृपा से व् आपके अनुग्रह से मै कुशल हूँ |’ सुन्दरी ने यक्ष से कहा ‘चलो , अब वृक्षों का परिचय करवाऊ |’ ‘एक व्रक्ष के निचे आकर दोनो खड़े रहे । यक्ष ने कहा : ‘इस व्रक्ष की डाली को स्पर्श करगी तो ये डालियों नृत्य करने लगेगी !’ सुर सुंदरी ने स्पर्श किया और…
पिता मिल गये – भाग 5
सून्दरी ने यक्ष से कहाँ – मेरे ही पापकर्मो के उदय से दुखी हुई हूँ | फिर भी अब वह दुःख चला गया |’ ‘किस तरह ?’ ‘पति छोड़ गए….पर पिता जो मिल गये ! अब में दुःखी नहीं हु |’ ‘तू दू :खी हो भी नहीं सकती कभी…. तेरे पास नवकार मंत्र जो है |’ ‘मेरा शील अखंड रहे…
पिता मिल गये – भाग 4
‘वह महामंत्र नवकार है,यक्षराज ! मेरी गुरुमाता ने मुझे ये मंत्र दिया है | मै रोजाना उसका जाप करती हु !मेरे लिए तो यही एक शरण्य है |’ ‘सचमुच तू धन्य है ! मै तुझे मरी बेटी मानता हुँ | अब तू मुझे बता की मै तेरे लिए क्या करू ?’ ‘मेरे लिए आप कष्ट न उठाये….मुझे मेरी किस्मत के…
पिता मिल गये – भाग 3
निरी क्रूरता व् भयानकता से भरी थी वह आक्रति | उस आक्रति की डरावनी आँखे सुरसुंदरी पर स्थिर न हो सकी | उसकी आँखे चुं धिया जाने लगी | वह आक्रति थी यक्ष की , मानवभक्षी यक्ष की | महामंत्र नवकार की ध्वनी उसके श्रवण पुट पर गिरी। उस दिव्य ध्वनी में यक्ष की कुरता का बर्फ पिघलने लगा |…
पिता मिल गये – भाग 2
सून्दरी के मानसपट पर साध्वी सुव्र्ता प्रकट हुए। उनके करुणासभर नेत्र दिखाई दिये। उनके मुँह में से शब्दों के फुल मनो झरने लगे : ‘सुंदरी,जिंदगी में केवल सुख की ही कल्पना बाधे रखना ! दुःख का विचार भी करते रहना !उन दुखो में धेर्य धारण करना | जीवात्मा के अपने ही बांधे हुए पापकर्मो के उदय से दुःख आता है…