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आखिर , जो होना था – भाग 6
दूर दूर जहाज चले जा रहे थे । क्षितिज पर मात्र बिन्दु के रूप में जहाज उभर रहे थे । ‘तुम मुझे इस सुने यक्षद्विप पर छोड़कर चले गये ? अकेली… निरी अकेली … औरत को इस डरावने द्विप पर छोड़ देने में तुम्हें बदला मिल गया अपनी बात का ? यक्ष की खुराक के लिये मुझे छोड़ दिया ।…
आखिर , जो होना था – भाग 5
‘अमर । तुम कहां हो ? स्वामिन , मेरे पास आओ न ? मुझे डर लग रहा है ।’ कोई जवाब नहीं मिलता है । कोई आहट नहीं सुनायी देती है । सुरसुन्दरी बावरी होकर वुक्षों की घटा में दौड़ने लगी। इधर उधर आँखे फेरने लगी : घटा में से बाहर आकर चौतरफ देखने लगी । कहीं अमरकुमार नहीं दिखा…
आखिर , जो होना था – भाग 4
अमरकुमार अपने जहाज में पहुँच कर सीधे ही अपने कमरे में घुस गया । दरवाजा बंद करके पलंग पर लेट गया । उसका मन बकवास करने लगा : अब मेरा काम हुआ ..। बदला लेने की मेरी इच्छा तो थी ही … पर वह इच्छा प्रेम की राख के नीचे दबी दबी सुबक रही थी । हाँ … मुझे भी…
आखिर , जो होना था – भाग 3
नहीं नहीं , मैं ऐसा जवाब दूंगा कि उन्हें कोई संदेह हो ही नहीं । मैं कहूँगा कि यक्ष आकर सुन्दरी को उठा ले गया …. और मैं तो बड़ी मुश्किल से बचकर यहां दौड़ आया …।’ ‘एक पल की देर किये बगैर जहाजों को रवाना कर दूंगा ।’ हां … यक्ष का नाम आते ही सब को मेरी बात…
आखिर , जो होना था – भाग 2
‘वैसे भी हमारा प्यार तो बचपन का है … साथ साथ पढ़ते थे … तभी से हम में एक दूजे के लिये लगाव था … खिंचाव था । बस, एक ही बार हम झगड़ा कर बैठे थे । मैं थोड़े ही झगड़ा था …। इसने ही तो मेरे साथ झगड़ा किया था । मैंने तो अपने प्रेम का अधिकार मानकर…