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कशमकश – भाग 6
‘क्या बोल रहा है बेटा तू’! यह सारी संपत्ति… यह सारा वैभव तेरा ही तो है। तुझे तेरी ज़िंदगी मे कमाने की जरूरत ही क्या है! जो कुछ है उसे ही सम्भालना जरूरी है। ‘पिताजी, जो भी है ….. यह सब आपका उपाजित किया हुआ है। उत्तम पुत्र तो आपकी कमाई पर नही जीते… में आपका पुत्र हूँ…. आप मुझे…
कशमकश – भाग 5
सुबह में उठते ही अमरकुमार ने संकल्प किया ‘आज पहले पिताजी से बात करूंगा। बाद मे माँ से बात करूंगा। सुबह में वह धनावह सेठ से बात न कर पाया। दुपहर को भोजन के समय बात रखूंगा तो माँ भी अपने आप बात जान लेगी। पर वह भोजन के समय भी बात नही कर पाया। पिताजी एवं माता के चेहरे…
कशमकश – भाग 4
सुरसुन्दरी अमरकुमार से ‘यानी क्या आप मुझे यही छोड़कर जाने का इरादा रख़ते हो? अमरकुमार – हाँ। ‘नही’ यह नही हो सकता ! मै तो आपके साथ ही चलूंगी! जहाँ व्रक्ष वहाँ उसकी छाया ! मै तो आपकी छाया बनकर जी रही हूं ! ‘विदेश यात्रा तो काफी मुश्किलों से भरी होती है। कई तरह की प्रतिकूलता आती है यात्रा…
कशमकश – भाग 3
सुरसुन्दरी भी अमरकुमार के साथ भरोखे में पहुँची। दोनों ने आकाश के सामने देखा। आप कुछ परेशान से नजर आ रहे हो। क्या चिन्ता हे ? आपको अभी तक नींद क्यों नहीं आयी? रात का दूसरा प्रहर पूरा होने को है। परेशान नहीं सुरसुन्दरी पर मन में विचारो की आंधी उमड़ रही है। किस के विचार आ रहे हे ?…
कशमकश – भाग 2
अमर ने सोचा -मन व्याकुल तो होगा पर मै मन पर काबु पालुगा। मै मन को समझा लुगा। वेसे तो पिताजी का भी कितना प्यार है मुझ पर। मै उनसे जब विदेश जाने की बात करूँगा उन्हें आघात भी लगेगा पर मुझे उन्हें संमभालना होगा। वे नहीं मानेंगे तो .. तो क्या मै खाना पीना छोड़ दुँगा। मै अब चंपा…