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एक जैन परिवार के घर का द्रश्य

एक जैन परिवार के घर का द्रश्य:::::
1995,
राजस्थान(उदयपुर )का एक गांव::::::
घर के सभी सदस्य सुबह के 6 बजे उठ गए, बच्चे बड़ो के पाव छु रहे है बड़े नहा धो कर स्वच्छ धोती दुपट्टा ओढ़े गांव के कोने में बने कुँए से पानी भर कर मंदिर जी में
अभिषेक पूजन के लिए ले जा रहे है। हर घर से कोई ना कोई धवल वस्त्र, धोती दुपट्टा डाले मन्दिर जी की और
पूजा पाठ के लिए सामग्री का थाल सजा का जा रहा है
पुरे गांव में पूजा और मंदिर की घण्टियों की आवाज सुनाई दे रही है
मन्दिर जी में साधर्मियो का जमावड़ा है।
अच्छा सा वहुत ही अच्छा माहौल है
आज गांव में बहुत गहमा गहमी है
महाराज जी का संघ आने वाला है, लोगो में होड़ मच
गई है, उनको लेने जाने के लिए ,लोग चोका लगाने के लिए
जिद करने लगे, आखिर समाज के लोगो ने कुछ लोगों
को अनुमति दी की आप दो दिन लगाये फिर दुसरो का नम्बर
रोज दोपहर को माराज जी के धार्मिक प्रवचन लोग सब व्यापार बन्द कर के उमड़ पड़ते,
कुछ दिनों के बाद महाराजजी ने विहार की इच्छा जताई
लोगो के आँखों से आँशु तक टपक पड़े,
फिर भी साधू तो साधू ठहरे
शाम को विहार कर ही गए
पूरा गांव कई किलोमीटर तक विहार में संग चला
और भारी मन से लौट आया
साधू को विदा कर क़े ।।।।
ये था लगभग 20 साल पहले का दृश्य
आज मुम्बई के उपनगर::::
के एक जैन परिवार का दृश्य
9 बजने को हे सब सोये हुए है
कोई उठ कर क्लासेस गया हे कोई
मोबाइल में 10-15 ग्रुप मेंजय जिनेन्द्रलिख कर पोस्ट कर रहा है
बच्चे बासी मुँह टीवी चालू कर कार्टून देख कर कार्टून जैसी हरकत कर रहे है
दादी एक कोने में बैठी, बार बार बोल रही है कोई नहा लिया हो तो,
मंदिर दर्शन तो करवा दो,
बेटा बोल रहा हे मुझे दुकान जाना है
पोता बोलता है
ओह दादी यू नो ना
मेरा क्रिकेट कोचिंग क्लास है
पोती दादी रात को किटी पार्टी थी, सोने दो ना
दादा जी छड़ी लेकर आये
चलो चल कर ही चले जाते है
बहु चिल्लाती है ::::::
कोई स्कूटर वाला उड़ा देगा
एक दिन नहीं जाओगे तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा
ये वो ही परिवार था जिसने पिछले महीने हुए नवनिर्मित मंदिर जी की प्रतिष्ठा में अपने बुजुर्ग को लाखो में बोली ले कर भगवान का माता पिता बनाया था
आज इनके घर में किसी को नित्य देव दर्शन को भी जाने की फुर्सत नहीं
क्या समय के साथ धर्म सिर्फ दिखावे के लिए रह जायेगा?
क्या उसका कारण कही ना कही हमारी आधुनिकता की और अधी दौड़ तो नहीं ?
क्या है धर्म का उपहास, अनदेखी ?
हम बड़े ही कर रहे है
फिर बच्चों से संस्कार की अपेक्षा कर रहे है
अगर धर्म का अस्तित्व बचाना है, तो कमर कसनी होगी
हम पहल कर रहे है,
सहयोग आपको करना होगा,
जय जिनेन्द्र

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