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लक्ष्य है, संसार विसर्जन

घर में कैसे रहना? घर के लोगों को कैसे स्नेह-सहानुभूति दे? उनका विश्वास कैसे जीते? स्नेह देंगे तो स्नेह मिलेगा, प्रेम करोगे तो प्रेम मिलेगा- यह कहने के लिए यह बाते नहीं की जा रही है। क्योंकि ऐसी बातें करना, यह एक प्रकार से संसार का पोषण करने का ही काम है। मुझे तुम्हारे संसार का पोषण नहीं करना है। बल्कि संसार से परे मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक और औचित्य की जिनाज्ञा आपको समझानी है।

यह बात में बार-बार करूंगा। तो आपको लगेगा कि महाराज साहब एक ही बात को कितनी बार कहेंगे? लेकिन यह प्राथमिक बात है, भूमिका की बात है, लक्ष्य बनाने की बात है, इसे बराबर ध्यान में रखना। गीत में भी नियम होता है कि ध्रुव पद आए तब प्रत्येक कड़ी को दोहराया जाता है। इनमें पुनरूक्ति दोष नहीं है। इस प्रकार इन बातों का भी बार-बार जिक्र करता रहूंगा।

यह बातें मुझे संसार सजाने के लिए नहीं करनी है, बल्कि संसार विसर्जन के लिए कहनी है। आपको भी इसी उद्देश्य से सुननी है। संसार विसर्जन की बात यदि में जोर-शोर से न करूं तो जिन्हें संसार में ही रुचि है, वे तो संसार के सर्जन की ही बातें याद रखेंगे ऐसा कोई करें, यह जानते हुए भी मैं उन्हें इस मार्ग पर मोड़ने की कोशिश न करूं, उपेक्षा करूं तो उस संसार-सर्जन का पाप मुझे भी लगेगा।

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