“जीवन का हेतु क्या है ?”
एक मनोविज्ञान की कक्षा में प्रोफेसर ने छात्रो से पूछा की जीवन का सच्चा हेतु क्या है?
सब विद्यार्थी सोचने लग गये। सभी के मन में उत्तर प्रगट हुए। पर कोई भी बोला नहीं। सभी प्रोफेसर की ओर देख रहे थे।
प्रोफेसर जवाब देने के लिए खड़े हुए और बोले आप सभी के मन में कुछ जवाब आया होगा। सभी के जवाब अलग होने के बाद भी सभी सही है।
प्रोफेसर का जवाब सुन कर के सभी विद्यार्थी आश्चर्य चकित हो गये। प्रोफेसर ने बातो को समजाते हुए कहाँ व्यक्ति अपने जीवन को फैलाना चाहता है। सजाना जाता है। इसके लिए जीवन का हेतु ध्येय हो सकता है। जीवन का मूल हेतु परमतत्त्व को पहचान ने का है। ध्यान का है पुजा पाठ का है इसलिए गीता में श्री कृष्ण ने कहाँ है परमतत्त्व के साथ कनेक्शन को मजबूत करे।
गांधी जी के चिंतन लेखन में जीवन का हेतु देश की आज़ादी और आबादी को बताया है।
साधू संत कहते है धर्म को पहचानो आत्मा के रहस्य को जानो वेदों उपनिषदो के ज्ञान को प्राप्त करो यही जीवन का हेतु है।
चिंतक कहते है मन की अमाप शक्तियो को जानो और प्राप्त करो मन की शक्तिया ही जीवन का लक्ष्य है।
कलाकार कहता है की जीवन में हर श्रण हर पल कुछ नया सर्जन करो वही जीवन का हेतु है।
शिक्षक कहते है पढ़ो लिखो ज्ञान का अर्जन करो ज्ञान ही जीवन का सही हेतु है। पुस्तको को पढो मित्रों को दो ज्ञान का विकास ही जीवन का सार है।
समाजसवी कहते है समाज की सेवा करो समाज की समस्याओ को जानो उनका समाधान करने का प्रत्यन करो।समाज से ही राष्ट्र का निर्माण होता है । समाज सेवा ही जीवन का हेतु है।
सुरज और चाँद कहते है स्वाभाविकता और सहजता से उगना प्रकाश फैलाना अंधकार को दूर करना सरलता से अस्त हो जाना ही यही जीवन का हेतु है।
यहाँ सारे हेतु सही है परन्तु उच्च हेतु नही हो सकते । उच्च हेतु तो जीवन की ख़ुशी आनंद को दुसरो में बाटना। एक में एक होकर जीवन के आनंद को बाटे यही जीवन का उच्च हेतु है।
” दो पल की जिंदगी के
दो नियम
निखरो फूल की तरह
बिखरो खुशबु की तरह“