Archivers

घोड़े घुड़साल से निकल चुके हैं

आज सदाचार खत्म होता जा रहा है, इसका मूल कारण आपका यह कमजोर पड़ोस स्थाई हुआ यही है। आपके दृश्य तथा श्राव्य स्त्रोत वही रहे, स्कूल के वातावरण वही रहे, मित्र वर्ग वही रहा, घूमने-फिरने के स्थान वही रहे और उसमें भी आज की कथित हाई सोसायटी के लोग कहां-कहां जाते हैं और क्या-क्या करते हैं? यह कहने जैसा नहीं है। जिसके यहां पैसा अधिक है, ऐसे अमीर लोगों के घरों में जितने दुराचार घुस गए हैं उतने दूराचार मध्यम वर्ग में अभी नहीं घुसे हैं। आज हमारे उपाश्रय थोड़े बहुत भी बचे हैं, उनमें यह भी एक कारण है कि उपाश्रय में अधिकांश मध्यम वर्ग के लोग देखने को मिलते हैं, लेकिन अमीरो की संतानें लगभग देखने को नहीं मिलती है।

कोई माता-पिता हमें वंदन करने आते हैं और हम शायद उनसे पूछ बैठे की ‘क्यों पुत्र को नहीं लाए? पुत्र कहां है?’

तो प्रत्युत्तर मिलता है- महाराज साहब! कहने जैसा नहीं है।

“क्यों क्या हुआ?’ इतना पूछने तक तो उनका चेहरा फीका पड़ जाता है, आंखों में आंसू होते है, गला भर आया होता है और भरी आवाज में बड़ी मुश्किल से कह पाते हैं ‘महाराज साहब!’ जब पुत्र को नियंत्रण में रखना था, तब नियंत्रित नहीं किया और अब वह हाथ में नहीं रहा। उसने हमें अंकुश में कर रखा है। घोड़ा घुड़साल से निकल चुका है। अब उसे वापस घुड़साल में लाना बहुत मुश्किल है।

आपके वस्त्र शालीन चाहिए
September 14, 2018
लक्ष्य है, संसार विसर्जन
September 17, 2018

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archivers