राजगृही नगरी के श्रेणिक राजा जब धर्मी न थे, वे चित्रशाला के लिए एक सुन्दर मकान का निर्माण करवा रहे थे। कोई कारण से उसका दरवाजा बनवाते और टूट जाता था। बार बार ऐसा होने से महाराजा ने वाहन पंडितों और ज्योतिषियों को बुलवाकर इसके बारे में राय मांगी।
ब्राह्मण पंडित कोई बत्तीस लक्षण वाले बालक की बलि चड़ने की राय दी, इसलिए बत्तीस लक्षण वाले बालक की खोज प्रारम्भ हुई। ऐसा बालक लाना कहाँ से ? इसके बारेंमे राजा ने गाँव में ढिंडोरा पिटवाया कि, जो कोई बालक बलि के लिए देगा उसे बालक के वजन जितनी सुवर्णमुद्राए की जाएगी।
इसी राजगृही नगरी में ऋषभदास नमक एक ब्राहम्ण रहता था। भद्रा नामक उसकी स्त्री थी। उनके चार में से एक बेटा राजा को बलि के लिए सौंपने का विचार किया, जिससे सुवर्णमुद्राए प्राप्त होने के कारण कंगालपन दूर हो जाये।
इन चार पुत्रों में एक अमरकुमार माँ को अप्रिय, एक बार जंगल में लकड़ी काटने गया था तब उसे जैन मुनि ने नवकार मंत्र सिखाया था। उसने माँ बाप को नहुत प्रार्थना की- ‘पैसो के लिए मुझे मत मरवाओं।’ ऐसे आक्रंद के साथ चाचा, मामा आदि सगे-सम्बन्धियों को खूब बिनतियां की लेकिन उसकी बात किसी ने न मानी। बचाने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। इसलिए राजाने उसके वजन जितनी सुवर्णमुद्राए देकर अमरकुमार का कब्ज़ा ले लिया।
अमरकुमार ने राजा से बहुत अजिजी करके बचाने के लिए कहा। रजा को दया तो खूब आई लेकिन – इसमें कुछ भी मैं गलत नहीं कर रहा हूँ – यूँ मन मनाया। सुवर्णमुद्राए देकर बालक ख़रीदा है, कसूर तो उसके माता पिता का हैं जिन्होंने धन के खातिर बालक को बेचा हैं।
मैं बालक को होम में डालूँगा तो वह मेरा गुनाह नहीं हैं – ऐसा सोचकर अंत में सामने आसन पर बैठे पंडितों की ओर देखा।
पंडितों ने कहा. ‘अब बालक के सामने मत देखो। जो करना हिं वह जल्दी करो। बालक को होम की अग्निज्वालाओं में होम दों। अमरकुमार को शुद्ध जल से नहलाकर, केसर चन्दन उसके शारीर पर लहाकर, फूलमालाएँ पहिनाकर अग्निज्वाला में होम दिया।
उस समय अमरकुमार जो नवकार मंत्र सिखा था उसी को आधार समझकर उसका ध्यान धरने लगा। नवपद का ध्यान करते करते अग्निज्वालाएँ बुझ गई, देवों ने आकर उसे सिंहासन पर बिठाया और देवों ने राजा को उल्टा गिरा दिया। राजा के मुहं से खून बहने लगा।
ऐसा चमत्कार देखकर राज्यसभा और ब्राहम्ण पंडितों वगैरह ने अमरकुमार को महात्मा समझकर उसके चरणों की पूजा करने लगे और राजाजी को शुद्धि में लाने की बिनती की। अमरकुमार ने नवकार मंत्र से पानी मंत्रित करके राजाजी पर छिड़का। रजा ने अंगड़ाई लेकर उठा। ग्राम्यजन कहने लगे, ‘बालहत्या के पाप के कारण राजाजी को यह सजा मिली।’
श्रेणिक महाराजा ने खड़े होकर कुमार की सिद्धि को देखकर अपना राज्य देने के लिए कहा। अमरकुमार ने कहा, मुझे राज्य की कुछ जरुरत नहीं है। मुझे तो संयम ग्रहण करके साधू बनना हैं।
लोगों ने अमरकुमार का जयजयकार किया। धर्म ध्यान में लीं होते ही अमरकुमार को जातिस्मरण ज्ञान हुआ और पंचमुष्टि से लोच करके, संयम ग्रहण किया और गाँव के बहार श्मशान में जाकर काउसग्ग ध्यान लगाकर खड़े रहे।
माता-पिता ने यह बात सुनकर मन से सोचा, ‘राजाजी आकर सुवर्णमुद्राए वापिस ले लेगा।’ इसलिए धन आपस में बाँट लिया और कुछ धरती में गाद दिया।
अमरकुमार की माँ को पूर्वभव के वैर के कारण रात्रि में नींद न आने से शस्त्र लेकर ध्यानस्थ खड़े अमरकुमार के पास पहुंची और अमरकुमार की हत्या का दी।
शुक्लध्यान में रहकर अमरकुमार काल अनुसार बारहवें स्वर्ग लोक में अवतरित हुए। बाईस सागरोपम आयुष्य भीगकर महाविदेह में जन्म लेकर केवलज्ञान पाएंगे।
अमर की हत्या करके माता खुश होती हुई चली जा रही थी, रसे में शेरनी मिली। शेरनी भद्रा माता को चिर – फाड़ कर खा गई। वह मरकर छट्ठे नरक पहुंची, उसे बाईस सागरोपम आयुष्य भुगतना बाकी हैं।