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कथा नवकार की

अंजन चोर – माँगा संसार मिला सिद्धि पद…

राजगृही नगरी में अंजन नाम का चतुर चोर था, उसका प्रेम नगर की वेश्या मणिकांचन से था। एक बार उसने अंजन चोर से कहा की मुझे रानी कनकावती के गले में जो ज्योतिप्रभा हार है, वह चाहिए। अंजन बोला कुछ दिन धैर्य रखो। अभी शुक्लपक्ष हैं और मेरी विद्या कृष्णपक्ष की अष्टमी को ही कार्य करती है। अतः कुछ दिन में हार ला दूंगा।
वैश्या ने कहा आप इतना सा कार्य नहीं कर सकते तो और क्या कार्य करोगे। जब में मर जाउंगी तब उस हार का क्या करुँगी।

अंजनचोर से यह ताना सहन नहीं हुआ। वह रात में राजमहल गया, विद्या के बल से उसने हार उठाया किन्तु हार में लगी हुई मणियो के तेज प्रकाश से हार दिख गया। उसकी विद्या का प्रभाव भी नष्ट हो गया। पहरेदारो ने उसका पीछा किया। वह शमशान की ओर भागा। वहाँ एक वृक्ष के निचे जलते दीपक को देख के वह उस पेड़ के निचे गया। वहा उस पेड़ में 108 रस्सियों का एक सिंका लटक रहा था उसके निचे भाला, बरछा, तलवार आदि 32 प्रकार के अस्त्र थे। एक व्यक्ति वहा पूजा कर नवकार मंत्र जपता हुआ एक एक रस्सी काटता जाता था। प्रत्येक रस्सी काटने के बाद वह भयातुर हो कर निचे उतरता फिर कभी ऊपर चढ़ जाता। वापिस रस्सी काट कर नीचे आ जाता। यह सब देख अंजनचोर ने उससे उसकी विगत पूछी।

वह बोला मेरा नाम वारिषेण हैं, मैं गगनगामिनी विद्या सिद्ध कर रहा हूँ, नवकार मंत्र का जाप कर रहा हूँ। मुझे यह विधि जिनदत्त श्रेष्ठि से मिली हैं। लेकिन मुझे भय हैं की यदि विद्या सिद्ध ना हुई तो में मर जाऊंगा। यह सुनकर अंजनचोर बोला तुम्हे मंत्र पर विश्वास ही नहीं हैं, इसलिए यह विद्या सिद्ध होगी भी नहीं। फिर अंजनचोर सोचता हैं की मुझे तो वैसे भी मरना ही हैं । इस लिएइस विधि और मंत्र पर विश्वास कर के मरना अच्छा हैं, अगर विद्या सिद्ध हो गई तो आकाश में उड़ सकता हैं । विलंब किया तो पहरेदार मुझे पकड़ लेंगे और राजा फांसी की सजा देगा। यह विचार कर के अंजनचोर ने वारिषेण से विधि करने की आज्ञा मांगी फिर उसने नवकार मंत्र पर दृढ श्रद्धा रख के जाप किया और 108 रस्सी को काट डाला। वह निचे गिरने वाला ही था तभी आकाशगामिनी विद्या प्रगट हुई और इस विद्या ने गिरते हुए अंजनचोर को ऊपर उठा लिया।

अंजनचोर तुरंत जिनदत्त सेठ के पास गया और नमस्कार किया। जिनदत्त के वैराग्य वासित वचन सुन के उसे संसार से विरक्ति हो गई। उसने देवर्षि नामक मुनि के पास दीक्षा अंगीकार की और अत्यंत तप कर के केवलज्ञान प्राप्त कर के मोक्ष सुख प्राप्त किया।

इस प्रकार एक चोर ने भी संसार के स्वार्थ के लिए भी नवकार मंत्र की शरण ली और उसे मिल गया सिद्धि पद। अतः हमें भी इस मंत्र का जाप अवश्य करना हैं – मोक्ष हाथ में ही दिखेगा। वीर गुरुदेवो के वचन यही हैं की मोक्ष पाना हैं तो नवकार की शरण आवश्यक हैं।

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