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अनन्य उपकारी श्री तीर्थंकर भगवंत

इस जगत में जो कुछ भी सुख है, उसके कारण भूत जो प्रवृत्ति हो रही है वह तीर्थंकर भगवंतो के कारण है। जगत के जीव जो कुछ सुख पा रहे हैं उसमें उपकार श्री तीर्थंकरों का ही है ।

सुख पुण्य के उदय से मिलता है , पुण्य बंध प्रवृत्ति से होता है ,शुभ प्रवृति शुभ अध्यवसाय से होती है । अब विचारणीय यह है कि जीव को शुभ अध्यवसाय कहां से आता है ?

अनादि काल के असद अभ्यास से, मलिन वासना के जोर से जीव पाप प्रवृत्ति वाला होता है ।ऐसी स्थिति में उसे श्रेयस्कर प्रवृति करने की वृत्ति सहज रूप से जागृत हो ऐसी शक्यता तो लगभग असंभवित है।

निसर्ग सम्यक्त्ववाले जीव को पूर्व जन्मों में अधिगम चाहिए। समग्र भव चक्र में एक भीअधिगम बिना सम्यक्त्व पाकर मोक्ष में जाने वाले जिवो की संख्या मरुदेवा माता की तरह विरल होती है । फिर भी उन्हें भी समवसरण की ऋद्धि के दर्शन रूप अधिगम तो था ही ।जीव श्रेयस्कर प्रवृति करने के लिए अधिगम से प्रेरित बनाया जाता है।

पाप के लिए आलंबन की जरूरत नहीं रहती अथवा पाप के आलंबनो से तो जगत भरा ही है।

पुण्य उपदेश बिना नहीं होता । उपदेश के लिए वचन की शक्ति चाहिए। सिद्ध तो अशरीरी है इसलिए वे स्वयं उपदेश नहीं देते। उपदेश तो मुख्य रूप से श्री अरिहंत भगवंत ही देते हैं , वे अपने वचन के अतिशय से अनेक जीवों को उपदेश देकर सत्य प्रवृति में जोड़ते हैं।

जगत में मोक्ष मार्ग और मार्ग के प्रतीक मंदिर ,मूर्ति ,उपाश्रय, शास्त्र ,संघ आदि श्री अरिहंत भगवंतो के कारण ही है ,इसलिए जगत में जो कुछ शुभ है , वह अरिहंत परमात्मा के प्रभाव के कारण ही है ।

आर्हंत्य की प्राप्ति की सामग्री भी श्री तीर्थंकर भगवन्त ही देते हैं । तीर्थं और उसके प्रतीकों का सर्जन उपदेश बिना नहीं होता। उपदेश देने हेतु जो पूण्यबल चाहिए ,वह तीर्थंकर भगवंतो के ही पास है! इसलिए हम जो कुछ साधना कर रहे हैं उन सब में श्री तीर्थंकर भगवंतो का ही उपकार है । यह हमेशा स्मृति में रहना चाहिए।

जिनका इतना महान उपकार है, उन्हें भूल कर या उनका स्वीकार करें बिना कोई भी आत्मा विकास के पथ पर गति नहीं कर सकती ।आत्मविकास के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए सत्य के स्वीकार की, उपकारी के प्रति नम्रता एवं कृतज्ञता भाव की, अनुपकरी या अपकारी के प्रति माध्यस्थ भाव के अभ्यास की पहली शर्त है । उसके बिना कषायमंदता अंतमूर्खता तथा ऐसे अन्य आध्यात्मिक गुणों की प्राप्ति होती।

श्री तीर्थंकर भगवंत हम सभी के अनन्य उपकारी हैं । जीवन में या दुनिया में जो कुछ अच्छा है वह उनके ही प्रभाव से है। इसलिए कल्याण की अभिलाषा वालों को उनका स्मरण -मनन- चिंतन, भजन, पूजन आदि द्वारा अपने समय ,शक्ति और श्वासोश्वास को सार्थक करना चाहिए ।

श्री तीर्थंकर परमात्मा को भूलकर जीव भव में खो जाता है और यहां वहाँ भटकता है- दुख पाता है श्री तीर्थंकर परमात्मा जैसे नाथ को जो भजते है, वे ही सच्चे सनाथ है।

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