दया के महसागर शय्यंभव सूरी जी ने मणक मुनि को वह ग्रन्थ अच्छी तरह से पढ़ाया । इसके परिणाम स्वरूप वे बालमुनि अत्यंत ही अप्रमत्त भाव से संयम धर्म की आराधना साधना करने लगे । मणक मुनि आत्म साधना में एकदम रम गए। अत्यंत ही आत्म जागृति पूर्वक मणक मुनि ने छः मास व्यतीत किये और एक दिन अत्यंत ही समाधी पूर्वक बालमुनि ने अपना देह छोड़ दिया। काल धर्म प्राप्त कर वे बालमुनि देवलोक में उत्पन्न हुए।
यद्यपि जैन मुनि के किसी के मरण का किसी प्रकार का शोक नही होता है। फिर भी मनक मुनि कालधर्म के बाद चौदह पूर्वधर शय्यंभव सूरी जी म. की आँखों में आंसू आ गए । यह दृश्य देख उनके शिष्यो को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछ ही लिया , ‘ प्रभो! आप तो निर्मोही हो फिर आपको यह मोह कैसे?’
आचार्य भगवंत ने कहा , ‘मनक के साथ मेरा पिता पुत्र का संबंध था और इसी पुत्र मोह के कारण मेरी आँख में आंसू आ गए ।’ इतना कहकर आचार्य भगवंत ने मनक के जीवन का सारा पूर्व वृत्तान्त कह सुनाया।
उसी समय यशोभद्र सूरी जी ने कहा, ‘भगवंत! आपने यह अपत्य सम्बन्ध हमसे छिपाकर क्यों रखा?, यदि आप पहले ही संकेत कर देते तो आपकी तरह आचार्य पुत्र की भी सेवा शुश्रुषा करते।’
आचार्य भगवंत ने कहा, ‘ मैंने उसके हित के लिए यह बात सबसे छिपाकर रखी थी। तपस्वी मुनियों की वैयावच्च आदि से उसे जो कर्म निर्जरा का लाभ मिला, यह तभी सम्भव हो सका , जब तुम , उनके और मेरे सम्बन्ध से अज्ञात रहे’।
तत्पश्चात् आचार्य भगवंत ने कहा, मैंने उसके उद्धार के लिए पूर्वो के सार रूप इस ‘दशवैकालिक’ की रचना की है; अब मुख्य उद्देश्य समाप्त हो चूका है, अतः में चाहता हूँ की उन अध्ययनों को संवृत्त कर यथा स्थान स्थापित कर दूँ।’
यशोभद्र सूरी जी आदि मुनियो ने यह बात संघ को कही । संघ ने निवेदन करते हुए कहा , ‘ मनक के हित के लिए बनाया हुआ ग्रन्थ समस्त जगत् के उपकार का निमित्त बना रहे, क्योकि भविष्य ने प्राणी अल्प बुद्धि वाले होंगे । मनक की तरह वे जीव भी इस ग्रन्थ से कृतार्थ बन सकेंगे। अतः आप इसका संवरण न करे।’
शय्यंभव सूरी म. ने संघ की भावना का सम्मान किया और दाशवैकालिक ग्रन्थ को वैसा ही बनाये रखा।
भव्य जिवों पर उपकार करते हुए शय्यंभव सूरी म. अत्यंत ही समाधिपूर्वक कालधर्म को प्राप्त कर देवलोक में उत्पन्न हुए ।
पंचमकाल के अंत तक जो सूत्र जगत को मोक्षमार्ग दिखलाता रहेगा , ऐसे परम पवित्र दशवैकालिक ग्रन्थ के रचयिता चौदह पूर्वधर महर्षि शय्यंभव सूरी जी म. के पवित्र चरण कमलों में कोटि कोटि वन्दना ।