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अग्निशर्मा का अनशन – भाग 9

तपोवन के बाहर एक पेड़ के तने के साथ को बांधकर सोमदेव ने तपोवन में प्रवेश किया। वे कुलपति के पास नही गये, चूँकि कुलपति सोमदेव को पहचानते थे। इसलिए वे सीधे ही अग्निशर्मा के पास ही पहुंच गये। नदी के किनारे के समीप के लतामण्डल में, घास के बने हुए लम्बे संथारे पर अग्निशर्मा बैठा हुआ था। उसके पास अनेक तापस बैठे थे। उसके चेहरे पर गुस्से की गुर्राहट छलक रहे थे। उसकी जबान में तीक्ष्ण कटुता झलक रही थी। तापसौ के समक्ष वह गुणसेन ही बुराईया कर रहा था।

सोमदेव ने अग्निशर्मा को प्रणाम करते हुए कहा- तुभ्यं नमः अग्निशर्मा ने आशीर्वाद देते हुए कहा ‘स्वागत’ ते उपविश। सोमदेव बड़ी संजि्दगी से वहाँ बैठे। अग्निशर्मा की कृश काया पर एक सरसरी निगाह डालकर उन्होंने हाथ जोड़कर पुछा ‘भगवंत, आपकी देह इतनी दुर्बल क्यो दिखाई दे रही हैं ? क्या कोई व्याधि आपको परेशान कर रही है। अग्निशर्मा ने कहा महानुभाव, निसपृह फिर भी दुसरो से आजीविका प्राप्त करने वाले तपस्विजनो के शरीर दुर्बल ही होते है। सोमदेव ने कहा महात्मन आपकी बात बिल्कुल सही है। तपस्वी निस्पृह ही होते है। वे धन-धान्य, सुवर्ण-चाँदी, मणि-मोती और विविध रत्नों के प्रति स्पर्ह रहित होते है। पशु-प्राणी औऱ मनुष्यों के प्रति ममत्वरहित होते है। परंतु भगवन धर्म आराधना के आधार भूत शरीर पर उपकार करने वाले आहार पानी की तो उन्हें अपेक्षा रहती ही है। और, इस नगर की प्रजा साधु-संतो को उचित भिक्षा देने वाली हैं। यह मुझे भलीभांति मालूम है। इसमें भी आप जैसे मुक्ति मार्ग को प्राप्त शत्रु-मित्र के प्रति,तृण-मणि के प्रति एवं स्वर्ण-धूलि के प्रति समान भाववाले महात्माओ को तो अवश्यमेव भक्तिभाव से आहार पानी देगी ही। अग्निशर्मा ने अकुलाहट के साथ कहा महानुभाव तुम्हारी बात यथार्थ है। इस नगर के लोग भावभक्ति से भरे पूरे है। इसमें तनिक भी शक नही है परन्तु एकमात्र राजा गुणसेन के अलावा। चेहरे पर झूठे आश्चर्य का भाव लाकर सोमदेव ने पुछा ‘भगवंत’ राजा गुणसेन ने क्या किया ?

वह राजा तो बड़ा ही धार्मिक वृति का एवं साधु पुरुषों का भक्त माना जाता है। अग्निशर्मा व्यंग में बोला सचमुच बहुत बड़ा धार्मिक हैं। उसके जैसा धार्मिक दूसरा कौन हो सकता है? कि जो निर्दोष वैसे तपस्वी को मारने के लिये प्रयत्नशील हो। उस शैतान राजा का नाम मत ले मेरे सामने। सोमदेव ने सोचा ‘यह तापस क्रोधविष्ट है। लम्बे बिछोने से दर्भ के आसन पर बैठा हुआ है। इसलिए जरूर उसने महाराजा से विमुख होकर अनशन अंगीकार किया प्रतीत होता है। इस वक्त यदि मै यहाँ पर बात बढ़ाऊँगा तो यह महाराजा के, अश्रव्य अवगुण बोलने लगेगा। इसलिए अब मुझे यहाँ से चलकर अन्य किसी तापस से बात कर के असलियत जाननी चाहिए।

आगे अगली पोस्ट मे….

अग्निशर्मा का अनशन – भाग 8
April 10, 2018
अग्निशर्मा का अनशन – भाग 10
April 10, 2018

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