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अग्निशर्मा तपोवन में! – भाग 4

कुलपति के एक एक शब्द ने अग्निशर्मा के संतप्त दिल पर चंदन का मानो विलेपन किया। अग्निशर्मा ने अपूर्व शांति और प्रसन्नता का अनुभव किया । उसने जीवन मे कभी भी ऐसी शांति और प्रसन्नता का अनुभव नही किया था ! उसने कुलपति के चरणों मे प्रणाम करके कहा : ‘महात्मन ! आपने जो कहा वह सत्य ही है ।…

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अग्निशर्मा तपोवन में! – भाग 3

अग्निशर्मा ने कुलपति को पुनः प्रणाम किये और वह विनपूर्वक आसन पर बैठा । उसे कुलपति अच्छे लगने लगे । पर्णकुटी भी मन को भा गई । तपोवन का शिष्टाचार एवं वातावरण पसंद आया । उसे तापसकुमार भी अच्छा लगा । ‘वत्स, तू कहां से आ रहा है ?’ कुलपति ने वात्सल्यपूर्ण शब्दो मे पूछा । अग्निशर्मा ने दिन एवं…

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अग्निशर्मा तपोवन में! – भाग 2

अग्निशर्मा ‘सुपरितोष’ नामक तपोवन के रमणीय प्रदेश में आ पहुँचा था। दो घटिका के विश्राम से उसकी थकान दूर हो गई थी। उसके शरीर मे स्फूर्ति का संचार हुआ था। वह खड़ा हुआ। उसने तपोवन में प्रवेश किया । चलते चलते वह एक पर्णकुटी के पास आकर खड़ा रहा। पर्णकुटी में उसने एक सौम्य और भव्य आकृतिवाले तापस को देखा…

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अग्निशर्मा तपोवन में! – भाग 1

घनघोर अंधेरी रात में चुपचाप चल निकला अग्निशर्मा, शितिप्रतिष्टित नगर के बाहर आकर, जंगल के अनजान- अपरिचित रास्ते पर लंबे लंबे डग भरता हुआ चलने लगा। वह चलता ही रहा…. रात भर चलता रहा…. दिन को भी रुके बगैर चलता रहा। डर की आशंका में घबरायी आंखों से पीछे मुड़मुड़कर देखता है और आगे बढ़ता जाता है । ‘मुझे पकड़ने…

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