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संयम राह चले सो शूर ! – भाग 1

‘महाराजा, हम अवधिज्ञान महामुनि श्री ज्ञानवर के दर्शन-वंदन करनें के लिये दक्षिणार्थ भरत में चंपानगरी में गये थे। वहां से आप के लिये एक संदेश लेकर के आये हैं ।’ सुरसंगीतनगर के राजसभा में उपस्थित होकर दो विद्याधरों ने विद्याधर राजा रत्नजटी के समक्ष निवेदन किया । चंपानगरी का नाम सुनते ही रत्नजटी सहसा सिहासन पर से खड़ा हो गया……

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