एक प्रखर विद्वान गुरु थे जिनका नाम आत्मबोध था। उनके ध्यान शिविर मे अनेक विद्यार्थी रहकर विद्या को प्राप्त करते थे और जीवन जीने की कलाए सिखाते थे। जिससे जीवन को आधुनिकता के साथ संतोष मय बनाया जा सके। शिविर मे एक विद्यार्थी चोरी करते पकड़ा गया। दुसरे विद्यार्थीयो ने उसकी शिकायत गुरुजी से करी।
गुरुजी ने कहाँ मै उसे समय देखकर समझा दूंगा। थोड़े दिन प्रसार हो गए, गुरुजी ने उस विद्यार्थी को कुछ भी नही बोला। कुछ दिनो के बाद पुनः उसको चोरी करते विद्यार्थीयो ने पकड लिया। गुरु को जाकर वापिस शिकायत करी। गुरु ने विद्यार्थीयो की बात सुनी पर उसे कोई सजा नही दी। फिर से वह विद्यार्थी तिसरी बार चोरी करते पकड़ा गया। और इस बार सारे students नारज हो गए थे। उन्होंने गुरु के पास जाकर उसे शिविर मे हे निकालने को बोला।
गुरु ने फिर से कहाँ – मै इस बात पर विचार करूंगा। दिन रोज निकलते जा रहे थे, गुरु ने कोई निर्णय नही लिया। देखते ही देखते मामला बहूत गर्म हो गया। Students मे आक्रोश की ज्वाला उडने लगी। अगर आप उसे शिविर मे से नही निकलोगे तो हम शिविर छोडकर चले जाएँगे। इस तरह की बात करके विद्यार्थीयो ने अपना आडर गुरु को सुनाया।
गुरु भी अपने फैसले को सुनाने के लिए तैयार थे। देखो छात्रो- मै मेरे हिसाब से उसे सुधारने का प्रयास कर रहे हूँ। और यह बात मेरे ध्यान मे है। और उसके बाद भी अगर आप छोडकर जाता चाहते हो तो आप स्वतंत्र हो।
गुरुजी का इह तरह का स्टेटमेंट सुनकर सारे विद्यार्थीयो आश्चर्य मे पड गए। एक चोर के लिए हम सब सज्जनो को छोड़ने के लिए गुरु तैयार है। एक छात्र ने गुरु को नमन करके यह बात पुछ ली- की गुरु आप उस चोर को छोड़ने के लिए तैयार नही पर हम सब को त्याग करने के लिए तैयार हो गए।
इसके पिछे का रहस्य?
गुरु ने बडा अच्छा जवाब दिया। देखो तुम सब समझदार हो गए हो। आप सभी सही- गलत, उचित- अनुचित का भेद जानते हो। तुम किसी भी जगह जा करके ध्यान केन्द्रित कर सकते हो। पर यह लडका उचित जगह पर भी रहकर अपनी गलत हरकते नही छोड सकता है, यहा पर भी अनुचित कार्य करता है तो फिर उसकी दुसरी जगह क्या दशा होगी? और मै गुरु बनकर के इसे यह बात नही सिखा पाया तो फिर दुनिया मे इसे सही रास्ते पर कौन लायेगा ? और मै इसे यहा से निकाल दूंगा तो इसमे गुरु के पद का अपमान होगा। क्योंकि गुरु का तो बस एक ही कार्य होता है और वह है छात्रो को सही दिशा दिखाना, जिससे उसका जीवन सदैव उज्जवल हो सके।
इसलिए मै इसे योग्य मार्ग पर लाकर के ही विदाई दूंगा। तब तक मै इसे विदा नही कर सकता।
गुरु की यह बात सुनकर सारे विद्यार्थी वही रूक गए। और वह चोर विद्यार्थी तुरंत ही गुरु के चरणो मे आकर के गिर गया और माफी मांगने लगा। फिर बोला जीवन मे कभी भी चोरी नही करूंगा।
“गुरू की दृष्टि और निष्ठा ने
छात्र के जीवन को प्रगति दे दी”