विचारों को अपने जीवन में परिवर्तन करना
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घोड़े घुड़साल से निकल चुके हैं
आज सदाचार खत्म होता जा रहा है, इसका मूल कारण आपका यह कमजोर पड़ोस स्थाई हुआ यही है। आपके दृश्य तथा श्राव्य स्त्रोत वही रहे, स्कूल के वातावरण वही रहे, मित्र वर्ग वही रहा, घूमने-फिरने के स्थान वही रहे और उसमें भी आज की कथित हाई सोसायटी के लोग कहां-कहां जाते हैं और क्या-क्या करते हैं? यह कहने जैसा नहीं…
आपके वस्त्र शालीन चाहिए
जब आप जिनालय-उपाश्रय में आए तब आप के वस्त्र शालीन होने चाहिए, आपको वस्त्रों की मर्यादा का पालन करना चाहिए। जैसे जिनालय में वस्त्रों की मर्यादा का पालन करना चाहिए वैसे ही उपाश्रय में आए तब भी आपको वस्त्रों की मर्यादा का पालन करना चाहिए। यह तो विरागियों का धाम है। यह विरागियो की वीतरागी बनने की साधना होती है,…
मृगापुत्र लोढ़ाया का पूर्वजन्म
मृगापुत्र को आँख , नाक, कान, मुख वगैरह शरीर का एक भी अंग मिला नही था। सिर्फ मांसपिंड के रूप में वह जन्मा । उसी स्वरूप में विकास पाया। सिर्फ २६वर्ष की आयु में वो मोत के अधीन बन गया। मांसपिंड का बना हुआ उसका शरीर था और शरीर में अंगोपांग के बदले सिर्फ छिद्र ही द्रष्टिगोचर होते थे। स्वयं…
सोधमेंद्र का पूर्वजन्म
पहले देवलोक के इंद्र का एक नाम सोधमेंद्र है तथा दूसरा नाम शक्रेद्र है। बत्तीस लाख देवविमनो का तथा अबजो देवदेवीओ के स्वामी का पिछला जन्म कुछ ऐसा है। इसी भरतक्षेत्र में प्रथविभूषण नामक नगर था । वहा कार्तिक नाम से श्रेष्ठि रहता था । बिसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुवर्तस्वामी की देशना सूनकर उसने प्रतिबोध पाया । प्रभु के पास सम्यक्त्व…
आर्द्रकुमार का पूर्वजन्म
अनार्यदेश में जन्मे आर्द्रकुमार आर्यदेश तथा भागवती प्रव्रज्या तक तो पहुँचे थे फिर भी विषयसुख की आसक्ति ने उनके जीवन को कलुषित कर दिया। इसका कारण उनके पिछले जन्म में समाया हुआ है। मगधदेश के वसन्तपुरनगर में सामायिक नामक एक सेठ रहता था। उनकी पत्नी का नाम बंधुमति। एक बार आचार्य सुस्थित सूरीश्वरजी वसंतपुरनगर में पधारे । श्रावको तथा जिनभक्तो…