दिन की कहानी
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सम्यग् ज्ञान और संयम
महाभारत में युधिष्ठिर जैसे पुन्यशाली को भी कहना पड़ा कि जानामि धर्मं न च मे प्रवृततिः। जातम्यधर्मं न च मे निवृततिः ।। में धर्म को जानता हूं फिर भी उसी तरह प्रवृत्ति नहीं कर पाता । मैं अधर्म को जानता हूं , फिर भी उस से छूट नहीं पाता । यहां प्रश्न खड़ा होता है कि ज्ञान किस कारण आचरण…
ज्ञानी का स्वरूप
ज्ञानी पुरुष हमेशा आत्मा के उपयोग में रहते हैं । उनकी वाणी अनुभव में आए वैसी होती है । ज्ञानी पुरुष अयाचक होते हैं । ज्ञानी स्वयं स्वतंत्र होते हैं । जब तक भूल होती हो तब तक मस्तक पर भगवान होते हैं । जब भूल रहित हो जाते हैं , तब वे स्वयं भगवान बनते हैं । ज्ञानी का…
श्रद्धा और ज्ञान
मानव जाति सभी जातियों से प्रधान जाती है । क्योंकि यह सबसे अधिक बुद्धिमान प्राणियों के समुदाय से बनी जाति है , मानव जाति यानी बुद्धिशाली प्राणियों का समुदाय! मानव समुदाय में भी काल क्रम से , काल भेद से , बुद्धि के तारतम्य से अनेक प्रकार के भेद हो जाते हैं , फिर भी हर काल में दूसरे प्राणियों…
भेदाभेदात्मक तत्वज्ञान
एकता तीन प्रकार की है- 1)जातिगत 2)गुणगत 3)पर्याय गत पर्यायगत एकता द्रव्य रूप स्वरूपास्तित्व है। गुणगत एकता प्रदेशगत एकाधारता रूप है और जातिगत एकता समष्टि स्वरूप सदृश्यास्तित्व रूप है। जातिगत एकता का भान स्नेह भाव विकसित करता है।द्रव्यगत एकता का भान समत्वभाव,स्थेर्य भाव और ध्रुव भाव विकसित करता है। एकाधारतारुप प्रदेशगत एकता का भाव आनंद भाव को विकसित करता है…
तत्व प्रसाद
द्रव्य और पर्याय दोनों से आत्मा को जानना वह ज्ञान है । मन का मोन यानी विचारों का मौन । जब विचार शांत हो जाते हैं तब यह मौन सिद्ध होता है । परा वाचा वाणी का मौन सिद्ध होता है तब वाचा वचन का पूर्ण मौन कहलाता है । वैखरी वाणी के मौन से भी मध्यमा , पश्यंती और…