दिन की कहानी
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बाह्य इच्छा एक पाप
बाह्य सुख-समृद्धि की कामना यह अनात्मभाव पोषक होने से पाप है। पुण्य कार्य के साथ बाह्य मलिन इच्छा का पाप मिलजाने से वह पुण्य भी पुण्यानुबंधी के बदले पापानुबंधी बनता है। थोड़ासा भी पुण्य, अपना फल अवश्य देता है। लेकिन पुण्य करते समय पुण्य के लौकिक फल की इच्छा करने से यह पुण्य अपना पूर्ण फल देने में समर्थ नहीं…
कृतज्ञता गुण का अभ्यास
पुण्य पुण्यानुबन्धी बना रहे यानी कि पापनाशक और मोक्षसाधक बना रहे, इस हेतु जीवन में कृतज्ञता और परोपकार गुण को पाना अत्यंत जरूरी है। जीव की पात्रता का और धर्म का अधिकारी बनने का मुख्य लक्षण कृतज्ञता है। ‘नमुत्थुणं’ सूत्र में अरिहंत परमात्मा की “पुरिसुत्तमाणं लोगुत्तमाणं”आदि जिन पदों के द्वारा स्तवना की गई है, उसमें उनका निरूपचरित लोकोत्तर परोपकार गुण…
पुण्य का हेय-उपादेय विभाग
सामान्यतः पुण्यबंध के दो प्रकार है- एक है पापानुबंधी पुण्य अर्थात पुण्य के फल की इच्छा से निदानपूर्वक किया जानेवाला पुण्य और दूसरा है पुण्यानुबंधी पुण्य अर्थात निष्काम भाव से मात्र स्व-पर के उपकार के लक्ष्य से किया जानेवाला पुण्य। इन दोनों प्रकार के पुण्य में प्रथम पुण्य सर्वथा हेय है, क्योंकि उसके द्वारा बाह्य सुख-समृद्धि में जीव को तीव्र…
क्रिया के गर्भ में ज्ञान
सामने सैकड़ों वस्तुए पड़ी हो , आंखें खुली हो तो भी लोग उन सभी वस्तुओं को देखते नहीं , जितनी वस्तुएं देखते हैं उतने को ही को भी नहीं समझते । अपनी गली में अमुक घर में कितनी खिड़कियां है ? यह खिड़कियों को प्रतिदिन देखने पर भी नहीं जानते । घूमने के रास्ते में आए हुए कितने ही वृक्षों…
विचार, आचार और श्रद्धा
आचार और विचार की सतह समान करने के लिए आदर्श को नीचे लाने की जरूरत नहीं है । आदर्श ऊंचे होंगे तो ही आचरण ऊंचे हो सकेंगे । आदर्श रज्जू समान है । वह ऊपर खींच सकता है , रज्जू का खुटा भले कितना ही ऊंचा हो , परंतु प्रामाणिक रूप से रज्जू का उपयोग किया जाए तो थोड़ा बहुत…