धोलका में दिनांक २०-०२-१९८८ को अच्छे घर की १७ साल की किशोरी ने आत्महत्या की। घटना ऐसी बनी थी कि दो घर आमने-सामने थे। दोनों सूखी, खानदान और संस्कारी घर थे। दोनों के बीच में घर जैसा संबंध था।लड़की हाईस्कूल में पढ़ती थी। पड़ोसी लड़के के साथ भाई जैसा पड़ोस संबंध था।२० फरवरी को लड़की घर पर अकेली थी।वह टी.वी.देखते मन वासनामय बन गया और वह सामने वाले लड़के के घर गई। लड़का भी घर पर अकेला था। और हुआ यह कि ना बनने वाली बात बन गई। दोनों ने वासना की पूर्ति की। थोड़ी देर के बाद लड़की के घर वाले उसे घर में और गांव के में ढूंढने लगे। यह बात लड़के को मालूम पड़ गई। उसने घर को बाहर से ताला लगाकर बड़े भाई को सब बात बता दी। बड़े भाई ने लड़की के घरवालों से कहा कि लड़की हमारे घर में है। तब वे निश्चित हुए। उनके घर जाकर द्वार खोल कर देखा तो लड़की ने गले में रस्सी बांधकर आत्महत्या कर ली थी।उसके हाथ में चिट्ठी थी। चिट्ठी में लिखा था, “इसमें मेरा ही दोष है। जिस पाप को मैं भधूतकारती थी वही पाप मैंने खुद ने किया है। इस पाप का दुष्ट फल भोग रही हूं।”
यह प्रसंग हमें बहुत कुछ सिखाता है। अब टी.वी. से भयंकर नुकसान होने के ऐसे अनेक उदाहरण सुनने में आते हैं। आलोक और परलोक में लंबे समय तक स्व-पर अहित करने वाले टी.वी. की भयंकरता को समझ कर उसका संपूर्ण या शक्य त्याग करके आत्महित करो यही शुभेच्छा है।