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ज्ञानी का स्वरूप

The-nature-of-wise

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ज्ञानी पुरुष हमेशा आत्मा के उपयोग में रहते हैं । उनकी वाणी अनुभव में आए वैसी होती है । ज्ञानी पुरुष अयाचक होते हैं । ज्ञानी स्वयं स्वतंत्र होते हैं । जब तक भूल होती हो तब तक मस्तक पर भगवान होते हैं । जब भूल रहित हो जाते हैं , तब वे स्वयं भगवान बनते हैं । ज्ञानी का एक भी कर्म भी बंधनकर्ता नहीं होता । ज्ञानी का कर्म मुक्ति दायक ही बनता है । स्वयं मुक्त होते हैं , दूसरों को भी मुक्त करते हैं । ज्ञानी निर्ग्रंथ होते हैं । उनकी सभी ग्रंथियां नष्ट हुई होती है ।

ज्ञानी में तीन गुण होते हैं ।Compressible रबड़ जैसे , flexible मोड़े वैसे मुड़े , लेकिन टूटे नहीं । tensible कितने भी tension को ग्रहण कर सकते हैं ।

ज्ञानी गुरु उत्तम होते हैं , गुरु से भी गुरु वे गुरुत्तम , उसी प्रकार ज्ञानी लघुत्तम भी होते हैं । लघुत्तम यानी लघु से भी लघु । आत्मा का एक गुण अगुरुलघु है , वह ज्ञानी में होता है । ज्ञानी आप्त होते हैं आप्त यानी सभी तरह से विश्वसनीय । मोक्ष प्राप्ति के लिए अंत तक विश्वास करने लायक हो वे आप्त कहलाते है । ज्ञानी पारस मणि जैसे होते हैं , अंतर बिना जो उनका स्पर्श करें , वह सुवर्ण जैसा बन जाता है ।

निर्विकल्प आत्मा को जानने के लिए निर्विकल्प समाधिस्थ एसे ज्ञानी पुरुष के पास जाना पड़े । ज्ञानी निर्मित भाव से ही रहे , करता नहीं बनते । जिसका ज्ञान सूक्ष्मतम समय को और सूक्ष्म सूक्ष्मातीसूक्ष्म परमाणु को भी देख सके , जान सके वै सच्चे रीछ में ज्ञानि कहलाते हैं ।
ज्ञानी के पास जाने के लिए परम् विनय होना चाहिए । में संपूर्ण अज्ञानी हूँ ऐसा हार्दिक स्वीकार होना चाहिए ।

स्वकृतं दुष्कृतं गर्हन , सुकृतं चनुमोदयन ।
नाथ! त्वच्चरणो यामि शरणम शरनोज्झितः ।।

अपने किए हुए दूष्कृतो की निंदा करते हुए , जगत के सभी सूकृतो की अनुमोदना करते हुए शरण बिना का में , है नाथ! आपके चरणों की शरण में आया हूं । सिर्फ एक बार इस भाव से ज्ञानी के चरणों में नमन करें अर्थात परम विनय से नमन करे , उसका मोक्ष अवश्य होता है ।ज्ञानी को नापने जाने तो उसकी मती नापी जाएगी । ज्ञानी को बुद्धि से नहीं तोला जाता । ज्ञानी के पास अबुध जैसा हो कर जाना चाहिए । ज्ञानी की आराधना न कर सके , वह एक बार क्षम्य गिना जा सकता है परंतु उसकी विराधना तो नहीं होनी चाहिए । ज्ञानी की विराधना यानी अपने ही शुद्ध आत्मा की विराधना । एक बार की गई विराधना भी अनंत संसार भ्रमण करवाती है । ज्ञानी के आगे तो सरल बनने से ही संसार को तीर सकते हैं ।

ज्ञानी पुरुष का अर्थ यह यथार्थ स्वरूप अच्छी तरह समझ कर हमें परमज्ञानी की श्री अरिहंत परमात्मा उनकी आज्ञा में त्रिविध त्रिविध रूप से तल्लीन बनकर ज्ञानी भगवनतो की सेवा भक्ति में निशदिन उद्यमशील बनना चाहिए ।

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