Archivers

Story Of The Day 3rd, March 2016

माँ की इच्छा

महीने बीत जाते हैं
साल गुजर जाता है,
वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर
मैं तेरी राह देखती हूँ।

आँचल भीग जाता है
मन खाली-खाली रहता है,
तू कभी नहीं आता
तेरा मनीआर्डर आता है।

इस बार पैसे न भेज
तू खुद आ जा,
बेटा मुझे अपने साथ
अपने घर लेकर जा।

तेरे पापा थे जब तक
समय ठीक रहा कटते,
खुली आँखों से चले गए
तुझे याद करते-करते।

अंत तक तुझको हर दिन
बढ़िया बेटा कहते थे,
तेरे साहबपन का
गुमान बहुत वो करते थे।

मेरे ह्रदय में अपनी फोटो
आकर तू देख जा,
बेटा मुझे अपने साथ
अपने घर लेकर जा।

अकाल के समय
जन्म तेरा हुआ था,
तेरे दूध के लिए
हमने चाय पीना छोड़ा था।

वर्षो तक एक कपड़े को
धो-धो कर पहना हमने,
पापा ने चिथड़े पहने
पर तुझे स्कूल भेजा हमने।

चाहे तो ये सारी बातें
आसानी से तू भूल जा,
बेटा मुझे अपने साथ
अपने घर लेकर जा।

घर के बर्तन मैं मांजूगी
झाडू पोछा मैं करूंगी,
खाना दोनों वक्त का
सबके लिए बना दूँगी।

नाती नातिन की देखभाल
अच्छी तरह करूंगी मैं,
घबरा मत, उनकी दादी हूँ
ऐसा नहीं कहूँगी मैं।

तेरे घर की नौकरानी
ही समझ मुझे ले जा,
बेटा मुझे अपने साथ
अपने घर लेकर जा।

आँखें मेरी थक गईं
प्राण अधर में अटका है,
तेरे बिना जीवन जीना
अब मुश्किल लगता है।

कैसे मैं तुझे भुला दूँ
तुझसे तो मैं माँ हुई,
बता ऐ मेरे कुलभूषण
अनाथ मैं कैसे हुई?

अब आ जा तू मेरी कब्र पर
एक बार तो माँ कह जा,
हो सके तो जाते-जाते
वृद्धाश्रम गिराता जा।

Story Of The Day 3rd, March 2016
March 3, 2016
समस्याएं ख़त्म नहीं होती
March 14, 2016

Comments are closed.

Archivers