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Story Of The Day 30th, January 2016

समय दस्तक दे रहा है

एक दिपक होता है, जिसमें एक लौ सदाए प्रकाश फैलाती होती है,
जीसकी रोशनी से हमारा जीवन भी झगमगाता रहेता है ।
पर अब इस ‘संसार रूपी’ दिए मे ‘समय रूपी’ तेल घट रहा है, अवसर्पिणी काल की तरफ संसार कदम बढा रहा है, जिसे कलयुग भी कहते है…।
जिसमे पूण्य का पतन और पाप तांडव मचाएगा, इंसान जिंदगी के बजाय मौत की साधना करेंगा, पर काल किसी की भी नही सूनेगा । पर घबराईए नही,
अभी भी ऐसी भयानक स्थिति आने मे कई हजार वर्ष बाकी है, उस संसार रूपी दिए मे अच्छाई की ज्योति अभी भी हमें सूख, संपत्ति प्रदान कर रही है ।
पर सतर्क होना है क्योकिं आसपास बूराई के काले बादल जोरशोर से मंडरा रहे है,
अन्याय, अव्यवस्था, स्वार्थ, निष्ठूरता, व्यसन, दूष्कर्म, लालच, गौहत्या, जीवहत्या, स्त्रीहत्या, ऐसे अनगिनत तूफान उस अच्छाई की लौ को हर दिन बूझाने की कोशिश मे लगे रहते है,
ताकी हमे मिलनेवाला सुख चैन खत्म हो जाए और हम दु:ख के अंधेरे मे घिर जाए ।
पर ये लौ सदियों तक चली आई है और सदाए चलती रहेगी भले ऊसकी रोशनी कम हो जाए
पर हम ऊस धर्म की लौ को मिटने नही देंगे और अधर्म को जितने नही देंगे ।

– महावीर की संतान है हम –
पर इसके लिए हमें ऊस अच्छाई की ऊस धर्म की ज्योति को बूराई के तूफानो से बचाना होगा जबतक बचा सके तबतक,
हम सोचते है की, क्या करेंगे हम ?, क्या होगा हमसे ?, हर तरफ ऐसे ही चलता है,
हम अकेले क्या कर लेंगे, हम क्यों कुछ करे, मैं तो बहोत सुखी हू जब कोई तकलीफ होगी तब
देखेंगे आज तो ऐश कर ले,
हम अपने बच्चों से प्यार करते है ? ( दूसरों के बच्चों से भी ज्यादा )
अपने माँता -पिता को कभी किसी बात के लिए कोसते है ?
( तूमने ये नही किया हमारे लिए, तूमने वो नही किया )
क्या हमारे बच्चों को तडपता देख सकोंगे ?
हर दिन नई बीमारी ऊन्हे घेरेगी, आदर्श, संस्कार और सदाचार से दूर भोग और रोग मे फसता देख सकोंगे ऊन्हे ? अगर हमें ये नही सूनना की तूमने हमारे लिए
क्या किया ? तो कुछ तो कर लो ।

बच्चों को पाल पोसकर बड़ा तो जानवर भी कर लेते है, पर
इन्सानियत जिंदा रखने का काम हम ईन्सान ही करते है ।
मेरे इस लंबे भाषण का तात्पर्य ईतना ही है की, अपने आप पर विश्र्वास कर लो,
निराशा को छोड़ दो, बच्चों को अच्छी स्कूल, बड़ी फिस , गाड़ी ऐशोआराम देना ही हमारा फर्ज नही है, आसपास की बिगड़ती राजकीय और सामाजिक स्थिति को भी सँभाले रखना हमारा फर्ज बनता है,
आखिर हम इसी समाज मे रहेते है ।
अभी भी देर नही हुई है, एक बार सारी परिस्थिति या हमारे हाथ से चली गई तो फिर नियंत्रण करना बहोत मुश्किल हो जायेगा और अब जीवदया पालक महान कुमारपाल राजा तो नही आएँगे अहिंसा का ध्वज फैलाने, और ना ही अपनी जान की बाजी लगाकर क्रांती करनेवाले निस्वार्थी भगतसिंह, सुखदेव आएँगे ।
देश और धर्म का स्वाभिमान जिंदा रखनेवाले शिवाजी अब कहाँ मिलेंगे ?
अधर्म को धर्म से परास्त करनेवाले अर्जुन अब कहाँ मिलेंगे ?
अब नाही राम आनेवाले है ना ही वीर महावीर,
बस इनके बताए मार्ग पर हमें चलना है,
समय दस्तक दे उसके पहले हमें समय देना है
अपने, धर्म और संस्कृति को ।

Story Of The Day 28th, January 2016
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