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Story Of The Day 2nd, March 2016

कर्मों से सावधान

इस लोक में जीवरहित शरीर को शव, मृतक या मुर्दा कहते है…
वैसे ही जैन शास्त्रों में “सम्यग्दर्शन -रहित” त्रसकाय को ‘चलता फिरता मृतक’ ही माना गया है।
मृतक जिसे अग्नि से जलाया जाता है, या पृथ्वी में गाढ़़ दिया जाता है, लेकिन
सम्यग्दर्शन रहित चलता हुआ “मुर्दा”
तो खुद ही चारों कषाय के बोझ़ के तले इतना दबा हुआ रहता है कि
अपने झूठे मद के कारण सत्यता की पहचान को भी नकार देता है और यह भूलकर की खुद अभी परमात्मा नही, दूसरों के लिये अपने मनमें कुँठाग्रस्त विचार पालकर, उनके लिये गढ्ढा़ खोद,
उन्हें नीचा दिखाने दौड़ पडता है,
लेकिन भूल जाता है कि कर्मो की गति न्यारी ही होती है, खुद ही फिर उसी गढ्ढे में गिरता है, और तब उसकी स्थिति उस नेंवले की तरह होती है कि ना तो वह सांप को निगल सक्ता है,
ना ही बाहर फैंक सक्ता है।
मद रुपी मान, ख्याति का लोभ, माया में अन्ध, और यही सब का मिश्रण क्रोध, एक इन्सान को “चैतन्य जड़ात्मा” की पहचान दिला ही जाता है, जो आखिरकार इस लोक से आज़ की पहचान से विदा लेते वक्त अपने प्रपंचो की वज़ह से, या फिर उन दुष्कृत्यों के प्रति अग्यानता की वज़ह से, वह निंदनिय और अपूज़निय ही रहता है।
सत्यता की पहचान होने पर आनेवाला अग्निरुपी क्रोध फिर भी बुझाया जा सक्ता है, पर यह तीनो कषाय प्रेरित क्रोध धारक को “जड़ता” की ही पहचान दिला जाता है।
लोकोत्तर में ऐसे “जड़ात्मा” की पहचान सिर्फ “चलती फिरती मृतात्मा”
के सिवा और कुछ भी नहीं,
इसी लिये है आत्मन, अपनी जड़ता की पहचान कर,
समकित परोक्श रहने पर भी, नकारना, जड़ता की ही पहचान है,
और दूसरों पर हँसना, और परिहास उडाना, उड़वाने में निमित्त बनना, खुद की सर्वश्रेष्ठता का प्रतिक कतई नहीं, बल्कि मूर्खता की पहचान है,
जो आखिरकार “जड़ात्मा” की ही पहचान कराती है
तभी तो कर्मों से सावधान रहना जिनवाणी में कहा गया है।

Story Of The Day 2nd, March 2016
March 2, 2016
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