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Story Of The Day 27th, February 2016

ऐसा ही एक प्रसंग याद आया

जन्मो जन्म की इस आत्मा ने अनेको बार स्वर्ग और नरक के दर्शन किए । स्वर्ग में बहुत वैभव मिला । भोग विलास किया, पर वहाँ पर भी “ईर्ष्या” । फिर धरती पर आए । अन्याय से लाखो- करोडो कमाएँ और इस धरती को भी नरक बना दिया और अन्त में स्वयं भी नरक में जा पहुंचे । हाँ ! यही है । यों तो हमारी वाणी में बहुत मधुरता रहती हैं । पर जब क्रोध की ज्वाला जल जाए तो चहरे में परिवर्तन, अपने अन्दर भीतर में रहा हुआ प्रेम, विनय, विवेक आदि गुणो को तो क्रोध खा जाता हैं । बस यही दशा है “नरक” और उसी समय विवेक जाग्रतहो जाये । तो जीवन स्वर्ग बन जाता हैं । बस यही है “स्वर्ग और नरक” । अब प्रश्न उठता है की इस “अनमोल मानव जीवन को स्वर्ग कैसे बनाये । तो आचार्य श्री “हरिभद्रसूरीजी” और “हेमचंद्राचार्यजी” ने अपने “मर्गाअनुसारी जीवन” के 35 गुणो को वर्णन हैं । जिसमे जीवन में करने योग्य 11 कर्तव्य, 8 दोषों का त्याग, 8 गुणो का आदर व 8 साधना का वर्णन बहुत ही सरल भाषा में किया है । जो संपूर्ण मानव जीवन को एक उत्तम दिशा देकर, जीवन को अपनी इच्छा अनुसार जिए हुए उच्चगति की ओर मोड़ देती है और आज इन्ही बातों को 25 के 50 हजार बॉडी कक्षाएं में व्यक्तित्व विकास ( personality development ) का नाम देखकर सीखते जाते है । जिसको को “जैन दर्शन” ने बरसो पहले बता दिया । लेकिन पैसे देकर सीखना यह एक स्थिति, ( status ) मानक, ( standard ) छवि, ( image ) हैं ।

Story Of The Day 27th, February 2016
February 27, 2016
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February 27, 2016

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