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Story Of The Day 20th, February 2016

योग की भूमिका

योग की भूमिका को प्राप्त व्यक्ति, माता-पिता की सब पूंजी धर्म में ही लगाता है, अपने उपभोग मं नहीं लेता । यदि अपने उपभोग में ले तो कदाचित उनके मरण की अनुमोदना होने की संभावना रहती है । अतः वह पिता की जमा पूंजी को धर्म के मार्ग में लगाता है । वो ही सच्चे अर्थ में संतान होने का गौरव हासिल करता है ।

-सज्जन तो बनो ही-

भगवान महावीर कहते है, जिल मनुष्य को अगले जन्म में भी मोक्ष के साधन रूप परमपद और परमात्म पद पाने के लिये साधु होने की संभावना है, उसे इस जन्म में कम से कम सज्जन तो बनना ही चाहिये । सज्जनता की नींव के बिना साधुता की इमारत कैसे टिक सकती ? सज्जनता साधुता की प्रथम सिढ़ी है ।

-कर्म और धर्म-

कर्म संसार में भटकाने वाला है और धर्म संसार से तारने वाला है । कर्म के साथ पुरे जोश और होश के साथ संघर्ष कर उसे हरा कर हमें धर्म करना है । कर्म कभी धर्म करने नहीं देता । कर्म आज्ञा दें तब धर्म करने की बात करने वाले अज्ञानी मूढ़ होते है । वह कभी धर्म आचरण नही कर सकते । कर्म ही संसार में भटकाता है । धर्म संसार से हमें तारता है ।

-सब पुण्यानुसार-

आजकल होड़ मची है सबको करोड़पति अरबपति बन जाना है । वह भी चाहे जैसे चाहे जिस रीति से ! संत कहते है, परंतु यह मत भूलो कि चाहे जितना अच्छा काल आवे व्यक्ति को उसके पुण्यानुसार ही फल मिलनेवाला है । पुण्यानुसार ही भोग कर सकता है और पुण्यानुसार ही जीवन में शांति मिलने वाली है । सब पुण्यानुसार ही मिलता है । चाहने मात्र से नहीं । अतः हमे पुण्य बढाने की होड़ करना चाहिये ।

-जिज्ञासा किसे कहते है ?-

धर्म जानने की जिज्ञासा हुयी अर्थात धर्म में नंबर लगा । जीव मिथ्यात्व से चौथे गुण स्थान पर आया । जानने की इच्छा तो आज के स्कालरों को भी होती है परंतु ज्ञानी संत उसे जिज्ञासा नहीं गिनते । संसार से उद्वेग हो, मोक्ष क्या है ? जानने की और जाने की इच्छा हो, उसके लिये क्या करना चाहिये । यह जानने हेतु धर्म सुनने की जिज्ञासा जगे, उसे ही जिज्ञासा कहते है, जिज्ञासा ही धर्म की जननी है।

Story Of The Day 19th, February 2016
February 19, 2016
Story Of The Day 20th, February 2016
February 20, 2016

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